_*किसी जमाने में- "पं. विष्णुदत्त शास्त्री "- ज्योतिष के प्रकांड विद्वान हुआ करते थे।*_
_उनकी पहली संतान का जन्म होने वाला था, पंडितजी ने दाई से कह रखा था- कि जैसे ही बालक का जन्म हो, एक नींबू प्रसूति कक्ष से बाहर लुढ़का देना।_
_बालक का जन्म हुआ...! लेकिन बालक रोया नहीं।_
_तो दाई ने हल्की सी चपत उसके तलवों में दी, पीठ को मला और अंततः बालक रोने लगा।_
_दाई ने नींबू बाहर लुढ़का दिया- और बच्चे की नाल आदि काटने की प्रक्रिया में व्यस्त हो गई।_
_उधर पंडितजी ने गणना की- तो पाया कि बालक कि कुंडली में *"पितृहंता योग"* है!_,
_*अर्थात उनके ही पुत्र के हाथों उनकी ही मृत्यु का योग!*_
_पंडितजी शोक में डूब गए और पुत्र को इस लांक्षन से बचाने के लिए बिना कुछ बताए घर छोड़कर चले गए।_
_*सोलह साल बीते....!*_
_बालक अपने पिता के विषय में पूछता,लेकिन बेचारी पंडिताइन उसके जन्म की घटना के विषय में सब कुछ बताकर चुप हो जाती।_
_क्योंकि उसे इससे ज्यादा कुछ नहीं पता था।_
_अस्तु !! पंडितजी का बेटा अपने पिता के पग चिन्हों पर चलते हुये प्रकांड ज्योतिषी बना..!!_
_*उसी बरस राज्य में वर्षा नहीं हुई...!*_
_राजा ने डौंडी पिटवाई कि- जो भी वर्षा के विषय में सही भविष्यवाणी करेगा! उसे मुंह मांगा इनाम मिलेगा।_
_लेकिन गलत साबित हुई- तो उसे मृत्युदंड मिलेगा !_
_बालक ने गणना की और निकल पड़ा।_
_लेकिन जब वह राजदरबार में पहुंचा तो देखा एक वृद्ध ज्योतिषी पहले ही आसन जमाये बैठे हैं।_
_*"राजन आज संध्याकाल में ठीक चार बजे वर्षा होगी"*_
_वृद्ध ज्योतिषी ने कहा:_
_बालक ने अपनी गणना से मिलान किया,,_
_और आगे आकर बोला,,"महाराज मैं भी कुछ कहना चाहूंगा!"_
_राजा ने अनुमति दे दी,,_
_"राजन वर्षा आज ही होगी,,_
_*लेकिन चार बजे नहीं,, बल्कि चार बजने के कुछ पलों के बाद होगी"*_
_वृद्ध ज्योतिषी का मुँह अपमान से लाल हो गया,,_
_इस पर वृद्ध ज्योतिषी ने दूसरी भविष्यवाणी भी कर डाली,,_
_"महाराज वर्षा के साथ ओले भी गिरेंगे,,_
_और ओले पचास ग्राम के होंगे"_
_पर बालक ने फिर गणना की,,_
_"महाराज ओले गिरेंगे,,_
_लेकिन कोई भी ओला पैंतालीस से_
_अड़तालीस ग्राम से ज्यादा का नहीं होगा"_
_अब बात ठन चुकी थी,, लोग बड़ी उत्सुकता से शाम का-_
_इंतजार करने लगे !!_
_साढ़े तीन तक आसमान पर बादल का एक कतरा भी नहीं था,,लेकिन अगले बीस मिनट में क्षितिज से मानो बादलों की सेना उमड़ पड़ी, अंधेरा सा छा गया।_
_बिजली कड़कने लगी... लेकिन चार बजने पर भी पानी की एक बूंद नहीं गिरी।_
_लेकिन जैसे ही चार बजकर दो मिनट हुए,, मूसलाधार वर्षा होने लगी।_
_वृद्ध ज्योतिषी ने सिर झुका लिया,,_
_आधे घण्टे की बारिश के बाद_
_ओले गिरने शुरू हुए, राजा ने ओले मंगवाकर तुलवाये,,*कोई भी ओला पचास ग्राम का नहीं निकला।*_
_शर्त के अनुसार वृद्ध ज्योतिषी को सैनिकों ने गिरफ्तार कर लिया,,_
_और राजा ने बालक से इनाम मांगने को कहा !_
_*"महाराज,, इन्हें छोड़ दिया जाये"*_
_बालक ने कहा: !_
_राजा के संकेत पर वृद्ध ज्योतिषी को मुक्त कर दिया गया !_
_"बजाय धन संपत्ति मांगने के- तुम इस अपरिचित वृद्ध को क्यों मुक्त करवा रहे हो"....??_
_बालक ने सिर झुका लिया,,_
_और कुछ क्षणों बाद सिर उठाया,,_
_तो उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे,,_
*_बोला:_*
_"क्योंकि ये सोलह साल पहले- मुझे छोड़कर गये मेरे पिता- *श्री विष्णुदत्त शास्त्री हैं"*_
*_वृद्ध ज्योतिषी चौंक पड़ा,,_*
_दोनों महल के बाहर चुपचाप आये,,_
_लेकिन अंततः पिता का वात्सल्य छलक पड़ा,,_
_और फफक कर रोते हुए- बालक को गले लगा लिया,,!_
_"आखिर तुझे कैसे पता लगा,, कि मैं ही तेरा पिता विष्णुदत्त हूँ " ??_
_*"क्योंकि आप आज भी- गणना तो सही करते हैं,,*_
_लेकिन सामान्य ज्ञान का प्रयोग नहीं करते"_
_बालक ने आंसुओं के मध्य मुस्कुराते हुए कहा:,_
_"क्या मतलब".....?? पिता हैरान था !_
_*"वर्षा का योग चार बजे का ही था,,*_
_लेकिन वर्षा की बूंदों को भी पृथ्वी की_
_सतह तक आने में- कुछ तो समय लगेगा - कि नहीं.... ???"_
_*"ओले तो पचास ग्राम के ही बने थे..!,,*_
_लेकिन धरती तक आते-आते कुछ पिघलेंगे कि नहीं..…???"_
_"और......"_
_"दाई माँ बालक को जन्म लेते ही_
_नींबू थोड़े ही फेंक देगी,,_
_उसे भी कुछ समय बालक को-_
_संभालने में लगेगा कि नहीं.... ???_
_और उस समय में ग्रहसंयोग बदल भी तो सकते हैं.. ना...??_
_और... *“पितृहंता योग”*_
_*“पितृरक्षक योग”* में भी तो बदल सकता है न....???_
_पंडितजी के समक्ष जीवन भर की_
_त्रुटियों की श्रंखला जीवित हो उठी,,_
_और वह समझ गए,, कि- केवल दो शब्दों के गुण के_
_अभाव के कारण वह जीवन भर पीड़ित रहे- और वह था!_
*राधे-राधे🙏*
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