Sunday, 15 October 2023

किसी जमाने में- "पं. विष्णुदत्त शास्त्री "- ज्योतिष के प्रकांड विद्वान हुआ करते थे।*_

_*किसी जमाने में- "पं. विष्णुदत्त शास्त्री "- ज्योतिष के प्रकांड विद्वान हुआ करते थे।*_

        _उनकी पहली संतान का जन्म होने वाला था, पंडितजी ने दाई से कह रखा था- कि जैसे ही बालक का जन्म हो, एक नींबू प्रसूति कक्ष से बाहर लुढ़का देना।_
          _बालक का जन्म हुआ...! लेकिन बालक रोया नहीं।_
     _तो दाई ने हल्की सी चपत उसके तलवों में दी, पीठ को मला और अंततः बालक रोने लगा।_
           _दाई ने नींबू बाहर लुढ़का दिया- और बच्चे की नाल आदि काटने की प्रक्रिया में व्यस्त हो गई।_
           _उधर पंडितजी ने गणना की- तो पाया कि बालक कि कुंडली में *"पितृहंता योग"* है!_, 
_*अर्थात उनके ही पुत्र के हाथों उनकी ही मृत्यु का योग!*_
    _पंडितजी शोक में डूब गए और पुत्र को इस लांक्षन से बचाने के लिए बिना कुछ बताए घर छोड़कर चले गए।_
            _*सोलह साल बीते....!*_
      _बालक अपने पिता के विषय में पूछता,लेकिन बेचारी पंडिताइन उसके जन्म की घटना के विषय में सब कुछ बताकर चुप हो जाती।_
         _क्योंकि उसे इससे ज्यादा कुछ नहीं पता था।_

_अस्तु !! पंडितजी का बेटा अपने पिता के पग चिन्हों पर चलते हुये प्रकांड ज्योतिषी बना..!!_

_*उसी बरस राज्य में वर्षा नहीं हुई...!*_

      _राजा ने डौंडी पिटवाई कि- जो भी वर्षा के विषय में सही भविष्यवाणी करेगा! उसे मुंह मांगा इनाम मिलेगा।_
     _लेकिन गलत साबित हुई- तो उसे मृत्युदंड मिलेगा !_
        _बालक ने गणना की और निकल पड़ा।_
          _लेकिन जब वह राजदरबार में पहुंचा तो देखा एक वृद्ध ज्योतिषी पहले ही आसन जमाये बैठे हैं।_
           _*"राजन आज संध्याकाल में ठीक चार बजे वर्षा होगी"*_
_वृद्ध ज्योतिषी ने कहा:_

_बालक ने अपनी गणना से मिलान किया,,_
           _और आगे आकर बोला,,"महाराज मैं भी कुछ कहना चाहूंगा!"_

        _राजा ने अनुमति दे दी,,_
      _"राजन वर्षा आज ही होगी,,_
         _*लेकिन चार बजे नहीं,, बल्कि चार बजने के कुछ पलों के बाद होगी"*_ 

    _वृद्ध ज्योतिषी का मुँह अपमान से लाल हो गया,,_ 

    _इस पर वृद्ध ज्योतिषी ने दूसरी भविष्यवाणी भी कर डाली,,_
    _"महाराज वर्षा के साथ ओले भी गिरेंगे,,_ 
    _और ओले पचास ग्राम के होंगे"_
          _पर बालक ने फिर गणना की,,_
_"महाराज ओले गिरेंगे,,_ 
_लेकिन कोई भी ओला पैंतालीस से_
_अड़तालीस ग्राम से ज्यादा का नहीं होगा"_
          _अब बात ठन चुकी थी,, लोग बड़ी उत्सुकता से शाम का-_
_इंतजार करने लगे !!_

           _साढ़े तीन तक आसमान पर बादल का एक कतरा भी नहीं था,,लेकिन अगले बीस मिनट में क्षितिज से मानो बादलों की सेना उमड़ पड़ी, अंधेरा सा छा गया।_

            _बिजली कड़कने लगी... लेकिन चार बजने पर भी पानी की एक बूंद नहीं गिरी।_
       _लेकिन जैसे ही चार बजकर दो मिनट हुए,, मूसलाधार वर्षा होने लगी।_

       _वृद्ध ज्योतिषी ने सिर झुका लिया,,_

_आधे घण्टे की बारिश के बाद_ 
     _ओले गिरने शुरू हुए, राजा ने ओले मंगवाकर तुलवाये,,*कोई भी ओला पचास ग्राम का नहीं निकला।*_

    _शर्त के अनुसार वृद्ध ज्योतिषी को सैनिकों ने गिरफ्तार कर लिया,,_

_और राजा ने बालक से इनाम मांगने को कहा !_

_*"महाराज,, इन्हें छोड़ दिया जाये"*_
_बालक ने कहा: !_

    _राजा के संकेत पर वृद्ध ज्योतिषी को मुक्त कर दिया गया !_
       _"बजाय धन संपत्ति मांगने के- तुम इस अपरिचित वृद्ध को क्यों मुक्त करवा रहे हो"....??_
        _बालक ने सिर झुका लिया,,_
        _और कुछ क्षणों बाद सिर उठाया,,_
          _तो उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे,,_
*_बोला:_*
    _"क्योंकि ये सोलह साल पहले- मुझे छोड़कर गये मेरे पिता- *श्री विष्णुदत्त शास्त्री हैं"*_

    *_वृद्ध ज्योतिषी चौंक पड़ा,,_*

       _दोनों महल के बाहर चुपचाप आये,,_ 

         _लेकिन अंततः पिता का वात्सल्य छलक पड़ा,,_

      _और फफक कर रोते हुए- बालक को गले लगा लिया,,!_

  _"आखिर तुझे कैसे पता लगा,, कि मैं ही तेरा पिता विष्णुदत्त हूँ " ??_ 

   _*"क्योंकि आप आज भी- गणना तो सही करते हैं,,*_
      _लेकिन  सामान्य  ज्ञान  का प्रयोग नहीं करते"_
       _बालक ने आंसुओं के मध्य मुस्कुराते हुए कहा:,_ 

     _"क्या मतलब".....??  पिता हैरान था !_

_*"वर्षा का योग चार बजे का ही था,,*_ 
      _लेकिन वर्षा की बूंदों को भी पृथ्वी की_
         _सतह तक आने में- कुछ तो समय लगेगा - कि नहीं.... ???"_ 

_*"ओले तो पचास ग्राम के ही बने थे..!,,*_
        _लेकिन धरती तक आते-आते कुछ पिघलेंगे कि नहीं..…???"_ 

_"और......"_
  _"दाई माँ बालक को जन्म लेते ही_ 
         _नींबू थोड़े ही फेंक देगी,,_ 

_उसे भी कुछ समय बालक को-_ 
     _संभालने में लगेगा कि नहीं.... ???_
       _और उस समय में ग्रहसंयोग बदल भी तो सकते हैं.. ना...??_
       _और... *“पितृहंता योग”*_
    _*“पितृरक्षक योग”* में भी तो बदल सकता है न....???_

        _पंडितजी के समक्ष जीवन भर की_ 
         _त्रुटियों की श्रंखला जीवित हो उठी,,_

       _और वह समझ गए,, कि- केवल दो शब्दों के गुण के_ 
     _अभाव के कारण वह जीवन भर पीड़ित रहे- और वह था!_


*राधे-राधे🙏*

No comments:

Post a Comment