Sunday, 5 November 2023
सरकार के लिए प्रवचन क्यों दे रहे हो CJI चंद्रचूड़ जी,सरकार क्या कर सकती है,उस पर ध्यान मत दीजिए,आप क्या कर रहे हैं, वह सोचिए -क्या सोच कर CJI चंद्रचूड़ ने सरकार के लिए प्रवचन देकर टकराव की बात की है कि विधायिका अदालत के फैसले में खामी को दूर करने के लिए नया कानून बना सकती है
सरकार के लिए प्रवचन क्यों दे रहे हो CJI चंद्रचूड़ जी,सरकार क्या कर सकती है,उस पर ध्यान मत दीजिए,आप क्या कर रहे हैं, वह सोचिए -क्या सोच कर CJI चंद्रचूड़ ने सरकार के लिए प्रवचन देकर टकराव की बात की है कि विधायिका अदालत के फैसले में खामी को दूर करने के लिए नया कानून बना सकती है लेकिन उसे सीधे ख़ारिज नहीं कर सकती - सुप्रीम कोर्ट का ऐसा कौन सा फैसला है जो सरकार ने खारिज किया है जिसकी वजह से चंद्रचूड़ उबल रहे हैं - क्या चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से CJI को बाहर करना तो समस्या नहीं कर रहा -चंद्रचूड़ ने कहा कि “न्यायाधीश इस बात पर गौर नहीं करते कि जब वह मुकदमों का फैसला करेंगे तो समाज कैसी प्रतिक्रिया देगा - सरकार की विभिन्न शाखाओं और न्यायपालिका में यही फर्क है - हम संवैधानिक नैतिकता का अनुसरण करते हैं न कि सार्वजनिक नैतिकता का - यह तथ्य कि न्यायाधीश निर्वाचित नहीं होते हैं, यह हमारी कमजोरी नहीं, बल्कि ताकत है” - कोर्ट का रुख समाज कौन सा है, इस पर निर्भर करता है - बहुसंख्यक है या अल्पसंख्यक -CJI चंद्रचूड़ को याद दिला दूं कि उनके पिता CJI Y V Chandrachud की 5 जजों की बेंच के 23 अप्रैल, 1985 के शाह बानो के फैसले को राजीव गांधी की सरकार ने 1986 में Muslim Women (Protection of Rights on Divorce) Act, 1986 कानून संसद से पास करा कर पूरी तरह खारिज कर दिया था क्योंकि राजीव गांधी ने मुस्लिम समाज के वोट की अहमियत को ध्यान में रखा था - सरकार को तो समाज का हित देखना पड़ेगा क्योंकि अदालत तो कुछ भी फैसले कर सकती है जिनसे चाहे कानून व्यवस्था ही क्यों न बिगड़ जाए जिसे संभालना तो सरकार को ही पड़ता है -अदालत हमारे समाज के लिए फैसले करते हुए दुनिया भर के देशों में चल रही प्रथाओं को नज़ीर मान कर चलती है जबकि उनसे हमारे समाज का कुछ लेना देना नहीं है - 377 हटाने, व्यभिचार कानून ख़त्म करने और Same Sex marriage के मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने अनेक देशों की प्रथाओं का विश्लेषण किया - फिर कैसे कह सकते हो कि आप यह नहीं देखते कि समाज क्या प्रतिक्रिया देगा -न्यायपालिका का काम संसद द्वारा पास किए गए किसी कानून की Constitutional Validity को परखने का है लेकिन उसे रोक कर सरकार को ठप नहीं कर सकते - कृषि कानूनों के साथ आपने यही किया जो उन्हें Stay कर दिया, Experts की समिति बिठा दी जिसकी रिपोर्ट 8 महीने दबा कर बैठे रहे और हुड़दंगियों को प्रदर्शन के नाम पर मौलिक अधिकारों की आड़ में सड़कों पर उत्पात मचाने दिया -इसी तरह CAA को चुनौती देने वाली याचिकाएं आप लिए बैठे हैं - और तो और संसद द्वारा पास किए गए किसी कानून को लागू न करने का अधिकार किसी राज्य सरकार को नहीं है लेकिन केरल और राजस्थान ने CAA लागू न करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की - उसकी तो सुनवाई Priority पर आपको करनी चाहिए -संविधान के अनुसार कानून बनाने का अधिकार केवल संसद को है और अनेक बार सुप्रीम कोर्ट स्वयं यह कह चुका है, अभी Same Sex मैरिज के फैसले में भी कोर्ट ने कहा था कि इसके बारे में कानून बनाना सरकार का काम है - लेकिन फिर भी आप Collegium का क़ानून बना कर बैठे है जिसका उल्लेख संविधान में नहीं है और आप इस कानून को सरकार एवं राष्ट्रपति पर थोप रहे हैं सरकार ने collegium को NJAC, 2014 के कानून से ख़त्म किया था लेकिन आपके 5 जजों ने संसद की 125 करोड़ लोगों की आवाज़ को दरकिनार करते हुए वह कानून “खारिज” कर दिया जबकि आपकी कोर्ट को एक “Stakeholder / Interested Party” होने के नाते फैसला करने का अधिकार ही नहीं था -आपने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए भी Collegium बना दिया - सरकार ने बिल पेश किया है कि चयन समिति में चीफ जस्टिस नहीं होंगे - क्या यही फैसला सरकार का आपकी आंखों में खटक रहा है ?सरकार को उपदेश देने की बजाय अदालत को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए कि वह कहां गलत है -(सुभाष चन्द्र)“मैं वंशज श्री राम का”05/11/2023
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