Wednesday, 31 July 2024

खंड विकास कार्यालय ए डी ओ आई एस बी दिनेश कुमार सेवानिवृत्त होने पर विदाई समारोह!----स्योहारा/डॉ०उस्मान ज़ैदी---

--- खंड विकास कार्यालय ए डी ओ आई एस बी दिनेश कुमार सेवानिवृत्त होने पर विदाई समारोह!
----स्योहारा/डॉ०उस्मान ज़ैदी---
   खंड विकास कार्यालय डबाकरा हाल में विदाई पार्टी समारोह का आयोजन ए डी ओ आई एस बी दिनेश कुमार  सेवानिवृत्त होने पर किया गया जिसमें समस्त स्टाफ एवं समस्त समूह की महिलाएं व मुख्य अतिथि के रूप में  ब्लॉक प्रमुख उज्जवल कुमार अध्यक्षता खंड विकास अधिकारी रामकुमार ने की तथा संचालन अकाउंटेंट प्रदीप कुमार ने किया!
                   ए डी ओ आई एस दिनेश कुमार का कार्यकाल समस्त स्टाफ तथा विभाग वे प्रशासन आदि के लिए संतोषजनक रहा इनकी कार्य शैली व भाषा शैली से सभी संतुष्ट रहे इन्होंने सदैव ही कर्तव्य पालन ईमानदारी वे जिम्मेदारी के साथ विभाग व जनहित मैं अंजाम दिया! रामकुमार खंड विकास अधिकारी ने कहा कि यह अपने कार्यकाल में व्यवहार कुशल मिर्द भाषी कर्तव्यनिष्ठ आदि के चलते हुए स्टाफ के लिए प्रेरणादायक रहे! इनका व्यक्तित्व लंबे समय तक यादों में बना रहेगा! ग्राम विकास अधिकारी कवराज सिंह ठाकुर ने कहा कि इनका सेवा निर्वित होना! हर्ष दायक है किंतु साथ-साथ ही इतने अच्छे व्यक्तित्व के मालिक हमारे बीच से चले जाना एक दुखदायक है! उनके अनुभव से लाभान्वित होते रहेंगे हम इसे आग्रह करते हैं कि समय-समय पर हमे अपना मार्गदर्शन देते रहें! समस्त स्टाफ ने स्मृति चिन्ह भेंट किए! एवं बधाइयां दी सभी उपस्थित जनों ने जलपान ग्रहण किया! कर्मचारियों ने अपने-अपने विचार विमर्श व्यक्त करते एवं इनको अपना प्रेणना स्रोत बताया! कार्यक्रम मे एडीओ पंचायत सहायक करुणा चौहान ए द ओ एस टी अवनीश कुमार, बीपीएम अभिषेक गुप्ता अतुल चिकारा सेक्रेटरी आशीष कुमार सेक्रेटरी माधव राणा सेक्रेटरी विवेक चौहान सेक्रेटरी गजपति सिंह सेक्रेटरी नसीम अहमद सेक्रेटरी ज्योति रानी सेक्रेटरी कंचन चौहान सेक्रेटरी विकास कुमार सेक्रेटरी शुभम चौहान सेक्रेटरी नीरज चौहान सेक्रेटरी विपुल कुमार सेक्रेटरी अमित कुमार मनरेगा योगराज सिंह दिनेश कुमार ए डी ओ समाज कल्याण विभाग सतेंदर कुमार कल्याण सिंह  सेक्रेटरी ममता रानी कंप्यूटर ऑपरेटर लेखराज सिंह धुरेन्द्र कुमार, आदि की अहम भूमिका रही! ढोल नगाड़ो के बीच होते हुए फूल मालाये पहनकर, थाने वाले चौराहे से होते हुए ए डी ओ आई एस बी दिनेश कुमार को खंड विकास अधिकारी रामकुमार अपनी गाड़ी में बैठाकर अपने साथ उनके निवास स्थान  धामपुर पहुंचा!

Tuesday, 30 July 2024

दिल्ली के जंतर मंतर पर महिला कांग्रेस का बड़ा आन्दोलन

दिल्ली के जंतर मंतर पर महिला कांग्रेस का बड़ा आन्दोलन
महिला आरक्षण कानून तत्काल लागू करने की मांग
मौलिक शक्ति न्यूज
नई दिल्ली। देश में महिला आरक्षण कानून लागू करने की मांग एक बार फिर जोर पकड़ने लगी है। इसे लेकर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की महिला विंग द्वारा सोमवार को दिल्ली में बड़ा आंदोलन किया गया। महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष अलका लांबा के नेतृत्व में आयोजित इस "नारी न्याय आंदोलन" में मध्य प्रदेश सहित देश के तमाम राज्यों से बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल हुईं।
जंतर मंतर पर आयोजित इस आंदोलन में शामिल महिला कांग्रेस की नेता पूनम पंडित ने बताया कि महिलाओं के साथ हो रही उत्पीड़न की घटनाओं पर रोक लगाने, राजनीतिक सशक्तिकरण, आर्थिक सशक्तिकरण, सामाजिक न्याय और सुरक्षा का अधिकार जैसी महत्वपूर्ण मांगों को लेकर देशभर की महिलाएं एकत्रित हुईं हैं।
महिला आरक्षण कानून के तहत वे सभी शासकीय नौकरियों से लेकर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में 33 फीसदी महिला आरक्षण और इसमें ओबीसी महिलाओं को भी शामिल करने की मांग कर रही हैं। कार्यक्रम में शामिल महिला नेत्रियों ने कहा कि महिला आरक्षण के नाम पर जो ये हमसे छल किया गया है और उसे वर्षों तक के लिए टाल दिया गया है। हमारी मांग है कि उसे जल्द से जल्द लागू किया जाए। ताकि आने वाले विधानसभा चुनावों में उन्हें लाभ मिल सके। 
मध्य प्रदेश महिला कांग्रेस की अध्यक्ष विभा पटेल ने बताया कि महिलाओं के हक और अधिकार के लिए महिला कांग्रेस की इस पूरे आंदोलन की तीन बड़ी और महत्वपूर्ण मांगे केंद्र सरकार से रहेंगी।
राजनीतिक सशक्तिकरण: महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण और भागीदारी के तहत महिला आरक्षण कानून को तुरंत लागू किए जाना चाहिए, जिसमें अति पिछड़े वर्ग कि हमारी ओबीसी की बहनों को आरक्षण और भागीदारी को सुनिश्चित कराना है।
आर्थिक सशक्तिकरण के तहत देश की आधी आबादी जो आज बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी से लड़ रही है, उसे राहत देने के लिए नारी न्याय के तहत केंद्र सरकार की महालक्ष्मी योजना के अनुसार हर गरीब परिवार की एक महिला को सालाना 1 लाख रुपया या हर महीने 8 हजार 500 रुपए की आर्थिक सहायता सीधा उनके बैंक खातों में दिए जाने की मांग की जाएगी।
सामाजिक न्याय और सुरक्षा का अधिकार: देश भर में लगातार महिलाओं के विरुद्ध अपराध में बढ़ोतरी हो रही है और अपराधियों में कानून नाम का कोई खौफ नहीं है। मध्य प्रदेश के रीवा में दो महिलाओं को जिंदा जमीन में दफनाए जाने की घटना ने प्रदेश ही नहीं देश को शर्मसार किया है। भोपाल में विगत 6 महीनों में 6 महिलाओं की हत्या, 153 बलात्कार की घटनाओं के साथ महिलाओं की हत्याओं का ग्राफ बढ़ा है। प्रदेश भर में महिलाओं में भय का वातावरण निर्मित है। इसलिए हम महिलाओं के लिए सुरक्षा का अधिकार चाहते हैं।

विद्युत उपभोक्ता समन्वय समिति का प्रतिनिधि मंडल मुख्य अधिशासी अभियंता से मिला* आज लिए गए समय के अनुसार श्री मुकेश पाठक के नेतृत्व में मुख्य अधिशासी अभियंता महफूज आलम से मिलकर जिले की बिजली की समस्याओं से अवगत कराते हुए समाधान करने का अनुमोदन किया।

*विद्युत उपभोक्ता समन्वय समिति का प्रतिनिधि मंडल मुख्य अधिशासी अभियंता से मिला* आज लिए गए समय के अनुसार श्री मुकेश पाठक के नेतृत्व में मुख्य अधिशासी अभियंता  महफूज आलम से मिलकर जिले की बिजली की समस्याओं से अवगत कराते हुए समाधान करने का अनुमोदन किया। 
विद्युत मीटर लगवाने या  विभाग से संबंधित किसी भी संविदा कर्मी या दलाल को कोई पैसा ना दिया जाए अगर कोई पैसा मांगता है तो उसकी शिकायत समिति या विद्युत विभाग से तुरंत करें।
विद्युत कटौती ,अनियंत्रित  विद्युत बिल और अन्य गंभीर समस्याओं पर विचार विमर्श कर विद्युत उपभोक्ता समन्वय समिति और विद्युत विभाग में एक दूसरे के योगदान के लिए सहमति बन गई है ।  समिति के अध्यक्ष फरहत अली खान ने कहा की अति शीघ्र विद्युत व्यवस्था चुस्त दुरुस्त हो जाएगी ऐसा आश्वासन दिया गया है। साथ ही जिस भी क्षेत्र में लोहे के बंधे तार से लाइन फाल्ट हो रहा है उस क्षेत्र के सभी पतंग  बाज होशियार हो जाए । उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई के साथ-साथ जुर्माना भी लगाया जाएगा । प्रतिनिधि मंडल में जिला उपाध्यक्ष वेद प्रकाश आहूजा संगठन मंत्री आसिफ उल्ला खान और मीडिया प्रभारी सैयद नदीम मियां शामिल रहे

Monday, 29 July 2024

सदाशिव अमरापुरकर भारतीय सिनेमा के एक प्रसिद्ध अभिनेता थे, जिन्होंने अपनी अद्वितीय अभिनय शैली और विलक्षण भूमिकाओं के लिए पहचान बनाई। उनका जन्म 11 मई 1950 को अहमदनगर, महाराष्ट्र में हुआ था।

सदाशिव अमरापुरकर भारतीय सिनेमा के एक प्रसिद्ध अभिनेता थे, जिन्होंने अपनी अद्वितीय अभिनय शैली और विलक्षण भूमिकाओं के लिए पहचान बनाई। उनका जन्म 11 मई 1950 को अहमदनगर, महाराष्ट्र में हुआ था। अमरापुरकर ने अपने करियर की शुरुआत मराठी थिएटर से की, जहां उनके अभिनय की गहराई और प्रभावशाली प्रदर्शन ने उन्हें फिल्मों में अभिनय के अवसर दिलाए। हिंदी सिनेमा में उनकी पहली प्रमुख भूमिका 1983 में रिलीज हुई फिल्म 'अर्ध सत्य' में थी, जिसमें उन्होंने एक भ्रष्ट पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाई। इस भूमिका के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।

सदाशिव अमरापुरकर ने अपने करियर में कई यादगार और प्रभावशाली भूमिकाएं निभाईं, लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा पहचान 1991 की फिल्म 'सड़क' में निभाए गए नेगेटिव किरदार 'महारानी' के लिए मिली। इस किरदार के लिए उन्हें फिल्मफेयर बेस्ट विलेन अवार्ड से नवाजा गया। उन्होंने 'कुली नंबर 1', 'हम साथ साथ हैं', 'हीना', और 'जख्मी औरत' जैसी कई अन्य प्रमुख फिल्मों में भी काम किया। उनकी अद्वितीय अभिनय शैली और किरदारों में गहराई लाने की क्षमता ने उन्हें दर्शकों के दिलों में एक विशेष स्थान दिलाया। 3 नवंबर 2014 को मुंबई में उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी फिल्मों और अद्वितीय अभिनय के जरिए वह आज भी याद किए जाते हैं।

सदाशिव अमरापुरकर भारतीय सिनेमा के एक प्रसिद्ध अभिनेता थे, जिन्होंने अपनी अद्वितीय अभिनय शैली और विलक्षण भूमिकाओं के लिए पहचान बनाई। उनका जन्म 11 मई 1950 को अहमदनगर, महाराष्ट्र में हुआ था।

सदाशिव अमरापुरकर भारतीय सिनेमा के एक प्रसिद्ध अभिनेता थे, जिन्होंने अपनी अद्वितीय अभिनय शैली और विलक्षण भूमिकाओं के लिए पहचान बनाई। उनका जन्म 11 मई 1950  अहमदनगर, महाराष्ट्र में हुआ था।अमरापुरकर ने अपने करियर की शुरुआत मराठी थिएटर से की, जहां उनके अभिनय की गहराई और प्रभावशाली प्रदर्शन ने उन्हें फिल्मों में अभिनय के अवसर दिलाए। हिंदी सिनेमा में उनकी पहली प्रमुख भूमिका 1983 में रिलीज हुई फिल्म 'अर्ध सत्य' में थी, जिसमें उन्होंने एक भ्रष्ट पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाई। इस भूमिका के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।

सदाशिव अमरापुरकर ने अपने करियर में कई यादगार और प्रभावशाली भूमिकाएं निभाईं, लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा पहचान 1991 की फिल्म 'सड़क' में निभाए गए नेगेटिव किरदार 'महारानी' के लिए मिली। इस किरदार के लिए उन्हें फिल्मफेयर बेस्ट विलेन अवार्ड से नवाजा गया। उन्होंने 'कुली नंबर 1', 'हम साथ साथ हैं', 'हीना', और 'जख्मी औरत' जैसी कई अन्य प्रमुख फिल्मों में भी काम किया। उनकी अद्वितीय अभिनय शैली और किरदारों में गहराई लाने की क्षमता ने उन्हें दर्शकों के दिलों में एक विशेष स्थान दिलाया। 3 नवंबर 2014 को मुंबई में उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी फिल्मों और अद्वितीय अभिनय के जरिए वह आज भी याद किए जाते हैं।

Sunday, 28 July 2024

ध्यान चन्द, मिल्खा सिंह, कुंवर सेन के नाम से लगाए वृक्ष*

*ध्यान चन्द, मिल्खा सिंह, कुंवर सेन के नाम से लगाए वृक्ष*
 एन आई एस खेल प्रशिक्षक संघ उत्तर प्रदेश द्वारा शहीद ए आजम स्पोर्ट्स स्टेडियम में वृक्षारोपण किया । वृक्ष के पौधे को भारतीय गौरव मेजर ध्यान चंद हॉकी के जादुगर, फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह और कबड्डी के अंतराष्ट्रीय खिलाडी श्री चौधरी कुंवर सेन जी  के नाम को समर्पित किए।हॉकी, एथेलेटिक्स, कबड्डी के छोटे-छोटे बालक बालिका खिलाड़ी स्टेडियम में एकत्र हुए और अपने छोटे छोटे हाथों से भारतीय लीजेंड को वृक्ष समर्पित किए साथ में इन पौधों को बचाने का भी संकल्प लिया इस अवसर पर प्रदेश अध्यक्ष फरहत अली खान ने 
प्रदेश और देश  के खिलाड़ियों  और प्रशिक्षकों से निवेदन किया कि अपने जिले के गौरवो के नाम से अपने स्टेडियम को पेड़ लगाकर गौरवान्वित  करें । वृक्षों का संरक्षण करने का भी संकल्प ले । वृक्ष रोपण में जिला क्रीडा अधिकारी संतोष कुमार एथलीट कोच फहीम अहमद मनोज कुमार और सभी इवेंट के खिलाड़ी मौजूद 

Saturday, 27 July 2024

पृथ्वी पर कहीं नर्क हैं तो वो यही हैं, हमेशा सुना होगा लोग तारीफ करते हैं किसी जगह की खास तौर पर यदि वो जगह घूमने वाली हो, और उसे ये बोल के संबोधित करते हैं कि पृथ्वी पर कहीं स्वर्ग है तो यहीलेकिन जो नीचे जगह आप फोटो में देख रहे हैं वो हमारे लिए किसी नर्क से कम नहीं थी

पृथ्वी पर कहीं नर्क हैं तो वो यही हैं, हमेशा सुना होगा लोग तारीफ करते हैं किसी जगह की खास तौर पर यदि वो जगह घूमने वाली हो, और उसे ये बोल के संबोधित करते हैं कि पृथ्वी पर कहीं स्वर्ग है तो यही
लेकिन जो नीचे जगह आप फोटो में देख रहे हैं वो हमारे लिए किसी नर्क से कम नहीं थी 

कुछ दिन पहले दोस्तों के साथ बंगाल घूमने का प्लान बना, वहां जाकर पता चला कि 4 घंटे की दूरी पर दिगह नाम की जगह है जो अपने बीच के लिए बंगाल में प्रसिद है 

पहले तो गया तो काफी मजा आया रस्ते के नजारे ऐसे देख के दिल खुश हो गया 
न्यू दिग़ाह बीच पर गया मन खुश हो गया, और मजा तो इतना आया पूछिए मत 

चारो तरफ वाटर स्पोर्ट आइसक्रीम ये सब बिक रही थी 

लेकिन जब वहां से थक कर वापस आए और होटल में।पूछा कि और क्या बचा, तो उन्होंने बताया कि की आप उदयपुर बीच जाइए लोग वहां एंजॉय करते हैं 

गाड़ी उठाई और दबा दी उदयपुर बीच की तरफ 
गाड़ी में जब तक था तब तक तो सब अच्छा था 

लेकिन जैसे ही गाड़ी से बाहर निकला, मन भारी हो गया, 
थोड़ी दूर आगे गया तो उल्टी होने लगी, मुझे तो मुझे मेरे
साथ आए 7 मित्रों को भी 

और ऐसा इस लिए क्यों की यहां पर बहुत स्ट्रांग खाने की महक थी नाक बंद कर के अंदर गया तो देखा चारो तरफ मछली केकड़ा बन रहा है, 

लोग एक टेबल पर बैठ के इसे खा रहे हैं और बीयर पी रहे हैं 

जिंदगी में बहुत से खराब खाने का अनुभव हुआ है, लेकिन ये मेरे लिए पहली बार था जब किसी खाने की महक सूंघ कर के मुझे और मेरे साथियों को उल्टी होने लगी हो 

कुछ देर रेस्ट कर के बैठा तो देखा एक बुजुर्ग आदमी बीच में फंसे पानी को एक बाल्टी में इकट्ठा करता है 

फिर दूसरा आदमी आके उसी पानी से मछली साफ करता है 

फिर एक औरत उसी पानी में मछली और केकड़ा बनती है 

अब तक समझ आगया था, कि इतनी तेज़ और गंदी महक किसकी है 

मैं मानता हूं कि शाकाहारी हूं लेकिन मेरे मित्र ऐसे नहीं है पर उन्हें भी इसका एहसाह हुआ 

साथ में जहां लोग केकड़ा खा कर जिंदा फ्राई मछली खा कर बीयर पीकर नाच रहे थे, वहां हमे ये लग रहा था कि ऐसी जगह से जल्दी से निकला जाए 

जिसका मुख्य कारण था तामसिक भोजन, जहां हजारों जिंदा केकड़े खौलते पानी में डाल दिए जा रहे थे 
अधमरी मछली को तेल में फ्राई किया जा रहा था 

जिसकी ऊर्जा इस बीच पर साफ महसूस की जा सकती थी 

मुझे नहीं पता आप में से कितने ने ऐसा महसूस किया है 
लेकिन हर जगह की अपनी ऊर्जा होती है 

और जहा पर तामसिक चीज हो वहां की ऊर्जा ऐसी ही होती है 

क्या आपने कभी कहीं ऐसा महसूस किया है 
कमेंट कर के जरूर बताइएगा

बाहुबली: द बिगिनिंग" (2015) में प्रभाकर ने कलकेय के किरदार को निभाया, जो एक निर्दयी और क्रूर आदिवासी सरदार था। इस फिल्म में उनके अभिनय ने दर्शकों और आलोचकों का ध्यान आकर्षित किया। कलकेय के किरदार के लिए उन्होंने अपने शारीरिक रूप को भी बदल लिया था, जिससे उनका किरदार और भी प्रभावशाली हो गया। उनकी दमदार आवाज़ और क्रूरता ने इस किरदार को बेहद यादगार बना दिया।

"बाहुबली: द बिगिनिंग" (2015) में प्रभाकर ने कलकेय के किरदार को निभाया, जो एक निर्दयी और क्रूर आदिवासी सरदार था। इस फिल्म में उनके अभिनय ने दर्शकों और आलोचकों का ध्यान आकर्षित किया। कलकेय के किरदार के लिए उन्होंने अपने शारीरिक रूप को भी बदल लिया था, जिससे उनका किरदार और भी प्रभावशाली हो गया। उनकी दमदार आवाज़ और क्रूरता ने इस किरदार को बेहद यादगार बना दिया।
प्रभाकर, जिन्हें तेलुगु सिनेमा में उनके खलनायक किरदारों के लिए जाना जाता है, एक प्रमुख भारतीय अभिनेता हैं। उन्होंने मुख्य रूप से तेलुगु और कन्नड़ फिल्मों में काम किया है। प्रभाकर को सबसे अधिक पहचान "बाहुबली" श्रृंखला में उनके किरदार "कलकेय" के लिए मिली। उनकी अभिनय क्षमता और विशिष्ट शारीरिक संरचना ने उन्हें एक प्रभावशाली खलनायक के रूप में स्थापित किया है।

प्रभाकर का जन्म आंध्र प्रदेश में हुआ था और उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा यहीं से पूरी की। अभिनय की दुनिया में उनका प्रवेश कन्नड़ फिल्मों के माध्यम से हुआ। धीरे-धीरे उन्होंने तेलुगु फिल्मों में भी अपनी पहचान बनाई और अपने अभिनय कौशल को निखारा।

प्रभाकर ने कई अन्य तेलुगु और कन्नड़ फिल्मों में भी खलनायक की भूमिकाएं निभाई हैं। उनकी प्रमुख फिल्मों में "सर्वम" (2009), "मरयादा रामन्ना" (2010), "रेड्डी" (2011), और "दूधसागर" (2014) शामिल हैं। इन फिल्मों में उनके द्वारा निभाए गए किरदारों ने उन्हें दक्षिण भारतीय सिनेमा के प्रमुख खलनायकों में से एक बना दिया।

प्रभाकर की पहचान उनकी दमदार शारीरिक संरचना, गहरी आवाज़, और खलनायक के किरदारों को जीवंत बनाने की अद्वितीय क्षमता से होती है। उनके अभिनय में गहराई और सजीवता होती है, जो दर्शकों को उनके किरदारों से जुड़ने में मदद करती है। उन्होंने हर किरदार को पूरी निष्ठा और समर्पण से निभाया है, जो उन्हें एक महान अभिनेता बनाता है।

प्रभाकर का व्यक्तिगत जीवन सादगी और समर्पण का प्रतीक है। उन्होंने अपने करियर में कई चुनौतियों का सामना किया है, लेकिन अपनी मेहनत और दृढ़ संकल्प से उन्होंने इन सभी चुनौतियों को पार किया। वे अपने परिवार के साथ समय बिताना पसंद करते हैं और अपनी निजी जिंदगी को बहुत ही प्राइवेट रखते हैं।

अखिल ब्रह्मांड में सृष्टि के मूल देवों के देव आदि देव महादेव भगवान शिव के बारे में पूर्ण वैज्ञानिक और मौलिक जानकारी डॉक्टर दिलीप कुमार सिंह ज्योतिष शिरोमणि

 *अखिल ब्रह्मांड में सृष्टि के मूल देवों के देव आदि देव महादेव भगवान शिव के बारे में पूर्ण वैज्ञानिक और मौलिक जानकारी डॉक्टर दिलीप कुमार सिंह ज्योतिष शिरोमणि*

 *भगवान शिव और भगवती पार्वती इस सारी सृष्टि के मूल हैं जो 1000000 अरब प्रकाश वर्ष में संपूर्ण लोको में  फैली एक करोड़ अरब आकाशगंगाओं के रूप में फैली है भगवान शिव का प्रत्येक कार्य परम अद्भुत परम विचित्र और सृष्टि एवं सभी प्राणियों की समझ के परे है । भगवान शिव का स्वरूप परम अद्भुत है वे आशुतोष हैं अवढरदानी हैंऔर इनकी गति अनंत है इनकी अर्धांगिनी भगवती पार्वती का एक रूप कृष्ण नक्षत्र अर्थात महाकाली है जिसे आधुनिक विज्ञान ब्लैक होल के नाम से जानता है जिसमें सारा लोक और ब्रह्मांड विनष्ट हो कर समाहित हो जाता है उनके वेग को रोकना भगवान शिव के ही बस में है *।

*जब प्रबल क्रोध में भगवती महाकाली ने चंड मुंड रक्तबीज और असंख्य राक्षसों का वध कर पूरे ब्रह्मांड को जलाना चाहा और सारी शक्तियां उन्हें रोकने में असफल रही तब भगवान शिव उनकी राह में लेट गए और उनके वक्षस्थल पर मां काली का पैर पड़ते ही उनकी सारी शक्तियां स्वयं भगवान शिव में समाहित हो गई उनकी लपलपाती निकली जीभ का यही वैज्ञानिक प्रमाण हैं जो भगवान शिव के अनंत वेग और अल्फा बीटा गामा किरणों में समा जाती है उसमें एक-रे क्वाजर और लेजर जैसी किरणें समाहित हो जाती है और आगे जाकर श्वेत विवर अर्थात व्हाइट हॉल में समाहित हो जाती है जो भगवान विष्णु का लोक है*।

*इनके तीन नेत्र जहां अल्फा बीटा और गामा किरणों का प्रतीक है तो वहीं इन का त्रिशूल प्रोटॉन इलेक्ट्रॉन और न्यूट्रॉन की ऊर्जा से  भरा हुआ है जिससे पलक झपकते ही वे संपूर्ण सृष्टि का संहार कर सकते हैं इनके तेज से निकलने वाली किरणे़ संपूर्ण विश्व को जीवन देती है तो जब क्रोध में इनकी तीसरी आंख खुलती है तो उससे लेजर और क्वाजर किरणों के साथ गामा की महाप्रलयंकारी किरणें निकल कर सामने पड़ने वाले सभी प्राणियों ग्रह नक्षत्र आकाशगंगा को भस्मीभूत कर देती हैं ।भगवान शिव आशुतोष  अर्धनारीश्वर हैं पशुपतिनाथ हैं त्रिपुरारी हैं नंदीश्वर हैं  महाकाल हैं  रूद्र हैं  बसु हैं  और भैरव तथा  वीरभद्र के अवतार हैं और संपूर्ण सृष्टि में सबसे भयंकर हलाहल कालकूट विष को पान करने के बाद भी जीवित रहने वाले एकमात्र आदिदेव जिस कालकूट विष की कुछ बूंदें गिरने से ही संपूर्ण संसार के विष और विषैले प्राणी उत्पन्न हुए हैं जिसकी भयानक गर्मी से पूरा ब्रह्मांड जलने लगा था उसको की जाना भगवान शिव के अलावा किसी का बस का नहीं था* ।

*उनके मस्तक पर विराजमान अमृत वर्षा करने वाला चंद्रमा उनके कालकूट महा विष को और उस के दुष्प्रभाव को निरंतर पीता रहता है जटाओं में समाहित गंगा प्रत्येक अहंकारी अभिमानी का मान मर्दन कर देती हैं और त्रिशूल में बंधा हुआ डमरु ध्वनि अर्थात नाद शब्द की महत्ता दिखाता है जिससे संपूर्ण सृष्टि उत्पन्न हुई है सारे ब्रह्मांड की ध्वनि भगवान शिव के डमरु से ही उत्पन्न हुए हैं इतना ही नहीं बल्कि उसी डमरू से सारे ध्वनि ,ओंकार और पाणिनि के 14 सूत्र भी निकले हैं जिससे सारे संसार की भाषाओं का व्याकरण और लिपियों का निर्माण हुआ।  और आज का विज्ञान है यह मान चुका है कि ध्वनि और नाद सृष्टि का मूल है जिसकी ऊर्जा अनंत होती है। इस संपूर्ण तीनो लोक के सभी सूर्य तारे और आकाशगंगा निरंतर ओम शब्द से गूंजती रहती हैं*

  *भगवान शिव सभी धर्म सभी सभ्यताओं में पूजे जाते हैं और सम्मानित हैं मक्का मदीना के मक्केश्वर माया और इंका सभ्यताओं के पशुपतिनाथ और मातृ देवी तथा सिंधु घाटी हड़प्पा लोथल की सभ्यता में आदिनाथ मिश्र यूनान और रोम की सभ्यता में और ऑस्ट्रेलिया की सभ्यताओं में भी उनके अलग-अलग रूप दिखाई पड़ते हैं थोड़े से ही तपस्या से प्रसन्न होकर अपने ही विरुद्ध वरदान देने वाले संपूर्ण सृष्टि के एकमात्र देव हैं और जब व प्रसन्न होते हैं तो 1000000000 करोड़ ब्रह्मांड खुशी से नाच उठते हैं और क्रोध में आने पर जब परम भयंकर तांडव नृत्य करते हैं सारी सृष्टि टूट टूट कर बिखरने लगती है अरबों आकाशगंगाएँ  नष्ट हो जाती हैं। अनगिनत ब्लैक होल अर्थात कृष्ण नक्षत्र चकनाचूर हो जाते हैं सारे सृष्टि और देव शक्तियों सब हाहाकार कर उठते हैं*

* *उनके क्रोध और भैरवनाद से वीरभद्र काल भैरव जैसे महागण प्रकट होते हैं जो दक्ष जैसे तीनों लोकों के स्वामी का सिर काट कर शिवजी को चढ़ा देते हैं शिव जी के द्वारा मान्य बेलपत्र बेर भांग और धतूरे कनेर तथा अन्य पुष्प पत्र दुनिया की सबसे चमत्कारी औषधियां हैं जिन पर व्यापक शोध हो रहा है । यह चमत्कारिक पौधे हैं जिन पर आज और आगे भी अनुसंधान जारी हैं।  उनका रहन-सहन वेशभूषा सब कुछ परम आश्चर्य का विषय है व्याघ्र का  चर्म सांप की माला बैल और व्याघ्र तथा मयूर सिर पर गंगा हृदय स्थल में पार्वती मां श्मशान घाट में निवास चारों तरफ भूत प्रेत पिशाच श्मशान घाट कैलाश मानसरोवर का क से ढका हुआ अद्भुत दृश्य बगल में गणेश और कार्तिकेय सब कुछ परम आश्चर्यजनक और वैज्ञानिक  है।*

 *भगवान शिव दुग्ध मधु जल नारियल भांग धतूरा पुष्प पत्रों का अभिषेक सावन मास में स्वीकार करते हैं जो वर्षा की बूंदों से और वर्ष भर की गंदगी से विषैले हो जाते हैं परंतु दुग्ध के साथ शिवलिंग पर चढ़ते ही उनका सारा विष अमृत में बदलकर बहने लगता है जो वर्षा ऋतु में सभी नदियों जलाशयों तालाब इत्यादि में एकत्र होकर संपूर्ण विषैले जल को जो तेजाब और अम्ल युक्त होता है उसे औषधि और अमृत में बदल देता है उनके शिवलिंग की महिमा न्यारी है जिसमें संपूर्ण  परमाणु जैव नाभिकीय रासायनिक धार्मिक और  आध्यात्मिक शक्तियां विद्यमान रहती हैं ।  महा रुद्राभिषेक में प्रयुक्त किए गए जड़ी बूटियों औषधियों और पूजा हवन सामग्री को नदी ताल पोखर  में मिला देने पर सबसे जहरीला और प्रदूषित पदार्थ और पानी शुद्ध हो जाता है जिन पेड़ों में तीन पत्ते होते हैं जैसे बेर बेल वे शिवजी को अत्यधिक प्रिय हैं।*

*बाघ का चर्म पहनकर हिममंडित कैलाश शिखर पर रहना और मानसरोवर झील में भगवती पार्वती के साथ निवास करना और बिहार करना सबके लिए परम आश्चर्य का केंद्र है जहां तापमान ऋणात्मक बिंदु से भी 70 से 80 डिग्री नीचे पहुंच जाता है और हवाएं इतनी भयंकर गति से चलती है कि चारों ओर ओम की ध्वनि बिखरती रहती है इतना ही नहीं कैलाश पर्वत पर भी ऊपर से देखने पर ओम स्पष्ट लिखा हुआ दिखता है और सारे संसार में आज तक कोई भी कैलाश पर्वत पर अपनी पताका फहरा नहीं पाया है । इसे जीतने के पर्वतारोहियों के सारे प्रयास विफल हुए हैं* ।

*वे देव दनुज दानव मानव नाग अवर्ण सवर्ण आदिवासी वनवासी सबके लिए एक समान है जो परम उदार हैं और अपनी परम प्रिय अर्धांगिनी पार्वती के लिए बड़े मनोयोग से सोने की  निर्मित लंका को दान में रावण को बिना किसी हिचकिचाहट के दे देते हैं शिवजी हर देश काल समय अणु परमाणु क्वार्क  बोसोन कणोंमें रचे बसे और स्वयं ही ईश्वरीय कण गाड पार्टिकल है हैं।और उसके भी ऊपर हैं। वे स्वयं सभी देवी देवताओं द्वारा पूज्य होकर भी भगवान विष्णु की पूजा करते हैं इस प्रकार विश्व के सबसे दुर्गम नीरव  स्थान जैसे श्मशान और कैलाश मानसरोवर और अमरनाथ की गुफाएं उनके सबसे प्रिय स्थान हैं*।

 * वे सतयुग त्रेता द्वापर कलयुग में हर समय विद्यमान रहते हैं सतयुग त्रेता द्वापर में तो शिवजी का प्रामाणिक वर्णन है ही कलयुग में ही सम्राट विक्रमादित्य सम्राट हर्षवर्धन देवराहा बाबा तैलंग स्वामी बाबा कीनाराम अवधूत भगवान राम और हम जैसे सच्चे भक्तों ने और तमाम लोगों ने इनका प्रत्यक्ष दर्शन किया है और हम आप भी साधना में भगवान शिव भगवती पार्वती का प्रत्यक्ष अनुभव करते हैं सभी के प्रति समान एकभाव होते हुए भी घनघोर संकट और आपत्ति काल में भगवान शिव उसी का साथ देते थे जो अधिक सच्चाई और सत्य की ओर रहता है उन्होंने देव दानव मानव एक किन्नर गंधर्व पशु पक्षी प्रत्येक जीव मात्र को सबको ऐसे वरदान दिये जो उन्हीं के लिए महासंकट का कारण बने परंतु इससे उन पर कोई अंतर नहीं पड़ा।*

 *भगवनशिव दैत्य राक्षस दानव भूत महाभूत काल महाकाल दानव मानव शैतान प्रेत  यक्ष किन्नर गंधर्व पशु पक्षी मानव  सबके परम प्रिय हैं और उनका सबसे प्रिय स्थान शमशान है और शमशान की राख बड़े प्रेम से अपने शरीर पर भस्म के रूप में लगाकर परम आनंदित होते हैं संसार का कल्याण करने के नाते उनका नाम शंकर और अत्यधिक प्रिय और कल्याणकारी होने के नाते शिव है और भोलेनाथ भूत भावन इसलिए कि आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं आशुतोष और अवढरदानी है* ।

*और भूतों के प्रिय महाभूत और  काल के महाकाल हैं क्योंकि सारे भूत और काल उन्हीं में समाहित हो जाते हैं वह संपूर्ण समय द्रव्यमान ऊर्जा विद्युत चुंबकत्व दिशा परमाणु ईश्वरीय कण पदार्थ प्रति पदार्थ इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन न्यूट्रॉन अल्फा बीटा गामा काल की अंतिम सीमा है एक तरफ भगवान राम को प्रत्यक्ष दर्शन देकर वरदान देते हैं तो दूसरी तरफ रावण को भी वर देते हैं नंदी और महाकाल रावण और बाणासुर जैसे लोगों के द्वारपाल हैं देवताओं की सभा के में सबसे सम्मानित सदस्य हैं अपने संपूर्ण ज्ञान कला शक्ति को वरदानस्वरूप में पारित करना लोक कल्याण के लिए लगा देना और अंतहीन कल्पना करना शिव जी का स्वभाव है *।

*उनके अस्तित्व को सभी भौतिक जीव और रसायन विज्ञानियों ने भी माना है वे अनंत हैं अक्षय हैं आदिदेव के साथ आदि पुरुष भी हैं भारत में प्रकृति पर्यावरण और शक्तियों को संतुलित स्वच्छ करने के लिए तमाम ज्योतिर्लिंग अर्थात शिवलिंग की स्थापना किया गया जिसमें सोमनाथ मल्लिकार्जुन महाकालेश्वर ओमकारेश्वर बैद्यनाथ भीम शंकर रामेश्वर नागेश्वर विश्वनाथ त्रंबकेश्वर केदारनाथ घृष्णेश्वर पूरे भारत में फैले हुए हैं और इनसे हमेशा तेजस्वी किरणें अर्थात रेडियो एक्टिव तत्व निकलते रहते हैं और संपूर्ण वातावरण को शुद्ध करते हुए सारे जहर को पीते रहते हैं* ।

*भारत में गिरने वाले तेजस्विता पूर्ण पिंडों से शिव की शक्ति से ही ज्योतिर्लिंगों का निर्माण हुआ महा प्रलय काल में वायु पुराण और शिव पुराण के अनुसार सारी सृष्टि शिवलिंग में लीन हो जाती है और एक ही सृष्टि का बिंदु नाद स्वरूप है और महा विस्फोट सिद्धांत के अनुसार जिसे  बिग बैंग थ्योरी कहते हैं ध्वनि ऊर्जा धन और ऋण बिंदुओं से फिर से आकाशगंगाओं का निर्माण और जीवन की सृष्टि होती हैं बिना ऊर्जावान नर नारी के सृष्टि का निर्माण असंभव है उनकी इच्छा मात्र से ही भगवती पार्वती मां अनंत ब्रह्मांडों का निर्माण कर देते हैं और उनके पलक झपकते ही सबका विनाश भी कर देती हैं* ।

*शिव जी की महत्ता की गौरव गाथा वेद पुराण उपनिषद विज्ञान धर्म दर्शन भैरव और शिव ग्रंथों शिव पुराण शिव संहिता रामायण महाभारत पंचतंत्र जातक कथा कमायनी में ही नहीं संपूर्ण दुनिया की लोक कथाओं में समाई है तंत्र मंत्र यंत्र और सारे अस्त्र-शस्त्र और  पाशुपत पिनाक नारायण अस्त्र चक्र सहित सभी दिव्यास्त्र भगवान शिव ने ही बनाए हैं और देवताओं सहित असुरों और दैत्यों तथा मनुष्यों को उन्होंने ही प्रदान किया है भगवान श्री राम रावण अर्जुन को दिए गए पशुपत अजगव जैसे अस्त्र-शस्त्र इसके प्रमाण हैं।  गीत संगीत शब्द नाद व्याकरण सब कुछ भगवान शिव से उत्पन्न हुए हैं*

 *संसार को मोक्ष प्रदान करने के लिए भगवान शिव ने भगवती पार्वती को अपनी अमृत कथा का वर्णन अमरनाथ की पवित्र गुफा में किए जिससे तमाम शाखाएं निकली और विज्ञान भैरव तंत्र अघोर पंथ का भी निर्माण हुआ है संपूर्ण धरती पर एकमात्र अमरनाथ की पवित्र गुफा में ही शिवलिंग का निर्माण होता है शिव जी ने ही हठयोग सहित समस्त ज्ञान विज्ञान की शाखाओं का निर्माण किया है । दुनिया ने सभी पर्वत चोटी ऊपर विजय पाली लेकिनअब भी कैलाश पर कोई भी चढ़ नहीं पाया क्योंकि यह भगवान शिव का स्थान है*

*शिव जी के अनंत नामों में 108 नाम अधिक प्रचलित हैं उसमें भी शिव महादेव महाकाल नीलकंठ शंकर पशुपतिनाथ गंगाधर नटराज त्रिनेत्र भोलेनाथ आदिदेव आदिनाथ त्रियंबक जटाशंकर जगदीश विश्वनाथ शिव शंभू भूतनाथ महारुद्र वीरभद्र और हनुमान अधिक प्रचलित है जय परंपरा में शिव जी की भक्ति और उनकी पूजा करने का किसी को मनाही नहीं है इसीलिए सब वैष्णव शाक्त दशनामी दिगंबर श्वेतांबर लिंगायत तमिल शैेव कालमुख कश्मीरी शैव वीरशैव नाग पाशुपत कापालिक काल दमन महेश्वर चंद्रवंशी सूर्यवंशी अग्रवंशी नागवंशी सभी शिव की परंपरा को मानते हैं*।

 *यक्ष किन्नर गंधर्व राक्षस मानव सबके आदि देव भगवान शिव हैं सभी बनवासी कोल भील किरात आदिवासी उनका ही धर्म मानते हैं कामदेव को जीतने और भस्म करने की क्षमता भगवान शिव में ही है गणेश और दक्ष के कटे सिरों को जोड़कर फिर से जीवित कर के विज्ञान का सबसे बड़ा चमत्कार किया जो आज भी किसी के द्वारा असंभव है ब्रह्मा जी के छल करने पर त्रिशूल से पांचवा सिर काटकर उनके अहंकार को समाप्त किया और उन्हें पवित्र किया।*

 *भगवान शिव के वैसे तो अनंत अनुयायी और शिष्य है लेकिन उसमें भी मनु विशालाक्षी बृहस्पति शुक्र सहसराक्ष महेंद्र प्रचेता भारद्वाज अगस्त गौरी कार्तिकेय भैरव गोरखनाथ वीरभद्र मणिभद्र नंदी श्रृंगी घंटाकर्ण बाणासुर रावण विजय दत्तात्रेय शंकराचार्य मत्स्येंद्रनाथ का नाम प्रमुख है जिन्होंने शिव भक्ति का व्यापक प्रचार प्रसार किया शिवजी के व्रत और त्योहार तथा उत्सव सोमवार के प्रदोष के और श्रावण मास के तथा शिवरात्रि और महाशिवरात्रि के माने जाते हैं *।

*शिव जी के द्वारा आविष्कार किए दो महामंत्र हैं पहला है ओम नमः शिवाय और दूसरा है महामृत्युंजय का ओम जूं सः  मंत्र  ओम शिव पार्वती नमः  ओम नमः शिवाय  इत्यादि बोलकर  बेल पत्र गंगाजल अथवा दूध के साथ शिवलिंग पर चढ़ा कर उनका ध्यान करने और महामृत्युंजय मंत्र पढ़ने से मोक्ष और अमरत्व प्राप्त होता है सभी देवी देवताओं ने और भगवान श्री राम तथा कृष्ण और अर्जुन ने भी आसुरी और शैतानी शक्तियों पर विजय के लिए भगवान शिव का श्रद्धा के साथ पूजन करके उन्हें प्रसन्न किया और सर्वश्रेष्ठ पाशुपत नाम का दिव्यास्त्र और चक्र प्राप्त किया और भगवान श्री राम द्वारा रामेश्वरम में स्थापित शिवलिंग तो विश्व विख्यात है ही*

*शिव के पुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है जबकि शिव के गले में जो वासुकी नाग हैं वह शेषनाग के भाई हैं दुनिया में परस्पर सारे विरोधी चीजें भगवान शिव में मिलते हैं जैसे मोर और नाग एक दूसरे के प्रबल दुश्मन हैं भगवान गणेश का वाहन चूहा है जबकि सांप प्रबल मूषक भक्षी जीव हैं भगवती पार्वती का वाहन सिंह है और शिव जी का वाहन नंदी बैल है अनेकता में एकता भगवान शिव की अद्भुत देन है*।

 शिवजी के प्रमुख अवतारों में वीरभद्र पिप्पलाद नंदी भैरव महेश हनुमान शरभ दुर्वासा अश्वत्थामा वृषभ रतिनाथ कृष्ण दर्शन अवधूत भिक्षु आर्य सुरेश्वर किरात  सुमित नर्तक ब्रह्मचारी यक्ष विश्वनाथ दूधेश्वर हंस रूप द्विज नातेश्वर प्रसिद्ध है वेदों में रुद्र के 11 प्रमुख अवतार हैं जिनमें भव चंद्र शंभू बुद्ध आज पद शास्त्र विलो हित विरुपाक्ष भीम कपाली हैं । भगवान शिव कितने सुंदर हैं इसका वर्णन मिलता है एक बार भगवान गणेश ने उन्हें असली रूप दिखाने को कहा और उनका असली रूप देखकर तीनो लोग मोहित हो गया और गणेश जी चाहते थे कि उनकी मां भगवती पार्वती से सुंदर कोई ना हो इसलिए प्रार्थना करके उन्हें असली रूप में आने को कहा जिसे भगवान शिव ने मान लिया क्योंकि वह स्वयं भगवती पार्वती को सबसे अधिक चाहते हैं*

*भगवान शिव के अनेक चिन्ह मिलते हैं जिनमें उनके पैरों के चिह्न तमिलनाडु के नागपट्टनम के शेरू बंगड़ी क्षेत्र में शिव मंदिर में मिलता है और तिरुवन्नामलाई में भी उनके परिजन हैं तेजपुर असम में जागेश्वर उत्तराखंड मैं और रांची में पहाड़ी बाबा मंदिर पर उनके पद चिन्ह मिलते हैं शिवजी की गुफाएं विश्वविख्यात हैं पहली गुफा भस्मासुर से बचने के लिए त्रिकूट पर्वत पर जम्मू से 150 किलोमीटर की दूरियों पर है और दूसरा विश्व विख्यात अमरनाथ की गुफा है जहां आज भी हर वर्ष परम अद्भुत शिवलिंग का निर्माण होता है* ।

*शिव जी इतने सरल और भोले हैं कि कोई भी पद चिन्ह लेकर या किसी भी चीज की कल्पना करके उनकी पूजा कर सकते हैं पत्थर का ढेला बटिया रुद्राक्ष त्रिशूल डमरू और और शिवलिंग उनके विशिष्ट माने जाते हैं भगवान शिव एक तरफ तो देव गुरु बृहस्पति को दूसरी तरफ दैत्य गुरु शुक्राचार्य को और विधर्मी लोगों असुरों तथा शैतानों  के अंति प्रिय हैं सभी को उनकी तपस्या पर वरदान दिया है सभी जाति वर्ण धर्म और समाज के सर्वोच्च सर्वप्रिय देवता हैं*।

 *भगवान शंकर ने भगवान बुद्ध के रूप में भी जन्म लिया है उसमें 27 बुद्ध के नाम प्रसिद्ध हैं जिसमें तरंकर शंकर और मैं घमँ कर विशेष प्रसिद्ध हैं जितने धर्म संप्रदाय हैं अगर गहराई से अध्ययन किया जाए तो उसका मूल है भगवान शिव और शैव धर्म में ही प्रकट होता है दुनिया के सारे धर्म पंथ और मतमातांतर भगवान शिव के द्वारा ही उत्पन्न है जिनके नाम अलग-अलग है*।

 *शिव की एक पंचायत भी है जिसमें भगवान सूर्य गणपति भगवती पार्वती रुद्रा और विष्णु सम्मिलित हैं इनके प्रमुख गणों में वीरभद्र भैरव मणिभद्र नंदी श्रृंगी भृंगी संदेश  गोकर्ण घंटाकर्ण जय विजय पिशाच दांत नाग नागिन और पशु प्रसिद्ध है*।

 *शिवजी के प्रमुख 7 शिष्य है जिन्होंने सातों महाद्वीपों पर ज्ञान धर्म और सभ्यता का प्रचार प्रसार किया उत्तरी दक्षिणी अमेरिका यूरोप और एशिया अफ्रीका और आस्ट्रेलिया तथा अंटार्कटिका पर उनके शिष्यों ने ज्ञान विज्ञान की कला बिखेरी बृहस्पति विशालाक्षी शुक्राचार्य सहस राक्षस महेंद्र प्रचेता मनु और भारद्वाज तथा गौर सिरस इनमें प्रसिद्ध है इनके 7 पुत्र गणेश कार्तिकेय सुकेश जालंधर अय्यप्पा भीम और हनुमान माने जाते हैं* ।।

*भगवान शिवकीे प्रथम पत्नी परम सती महादेवी सती थी जिन्होंने शिव के अपमान पर अपना प्राण त्याग कर पार्वती के रूप में जन्म लिया । जिनके अनंत नाम है जिन्हें महागौरी महाकाली उमा उर्मी अपर्णा भवानी शैलपुत्री इत्यादि नामों से जाना जाता है। भगवती पार्वती और भगवान शिव मिलकर अर्धनारीश्वर के रूप में समस्त सृष्टि का पालन पोषण और संहार करते हैं*

 *पूरे विश्व के सभी अस्त्र-शस्त्र भगवान शिव ने ही बनाया और सब को दान दिए उसमें भी त्रिशूल पिनाक धनुष चक्र सुदर्शन चक्र पाशुपत विश्व विख्यात है संपूर्ण सृष्टि और देवी-देवताओं के निर्माता होने से ही भगवान शिव को आदि देव आदिनाथ और भगवती पार्वती को आदि देवी माना जाता है। सारे संसार में हर धर्म के लोग इनका साक्षात दर्शन करके अपना जीवन धन्य कर चुके हैं और सारा परम विश्व इन्हीं में समाहित है क्योंकि इन्हीं से उत्पन्न है*

 *डॉ दिलीप कुमार सिंह ज्योतिष शिरोमणि और निदेशकअलका शिप्रा वैष्णवी ज्योतिष मौसम और विज्ञान अनुसंधान केंद्र*
[7/26, 8:37 AM] Dileep Singh Rajput Jounpur: पेरिस ओलंपिक 2024 और भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन डॉ दिलीप कुमार सिंह


प्रस्तावना

 पेरिस ओलंपिक खेल आज से 26 जुलाई से प्रारंभ हो जाएंगे इस बार भारतीय खिलाड़ियों का लंबा चौड़ा दल ओलंपिक खेलों में अर्हता प्राप्त करने के बाद पेरिस ओलंपिक में भाग ले रहा है 

ओलंपिक खेलों में भारत का बहुत ही निराशाजनक प्रदर्शन रहा है

आधुनिक विश्व में ओलंपिक खेलों का शुभारंभ 18 96 ईस्वी में एथेंस से प्रारंभ हुआ है सन 1900 से भारत ने ओलंपिक खेलों में भाग लेना शुरू किया है तब से लगातार भारत हर ओलंपिक खेल में भाग ले रहा है लेकिन भारत का ओलंपिक में प्रदर्शन कुछ विशेष नहीं रहा है अभी तक भारत ने ओलंपिक में केवल 10 स्वर्ण पदक जीते हैं जिसमें आठ तो केवल हॉकी में है एक एथलेटिक्स भाला फेंक में और दूसरा निशानेबाजी में प्राप्त किया है यदि यह विश्व स्तर पर देखा जाए तो यह अमेरिका चीन रूस जर्मनी जापान इंग्लैंड फ्रांस क्यूबा ऑस्ट्रेलिया कनाडा जैसे देशों के सामने कुछ भी नहीं है चीन और अमेरिका तो एक ही ओलंपिक में सबसे अधिक स्वर्ण पदक जीतने का अभूतपूर्व कीर्तिमान बना चुके हैं कोरिया और क्यूबा जैसे छोटे-छोटे देश भी एक ही ओलंपिक में 10 से ज्यादा स्वर्ण पदक जीत लेते हैं अभी तक भारत का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन टोक्यो ओलंपिक 2020 में रहा है जहां पर भारत ने एक स्वर्ण सहित सात पदक प्राप्त करके भारतीय खेलों के इतिहास में एक इतिहास रचा है प्रश्न है कि क्या वह अपना यह कीर्तिमान इस बार तोड़ पाएंगे और क्या विश्व स्तर पर कुछ दमदार प्रदर्शन कर पाएंगे

 पेरिस ओलंपिक और भारत के खिलाड़ियों का प्रदर्शन और उसकी भविष्यवाणी

 पेरिस ओलंपिक में क्या कुछ कैसा रहेगा आइए इस पर एक गहरी विवेचना करते हैं इस बार भारत कुल मिलाकर 16 खेल स्पर्धाओं में भाग ले रहा है और जिसमें तीरंदाजी एथलेटिक्स बैडमिंटन घुड़सवारी गोल्फ हॉकी जूडो नौकायन सेलिंग निशानेबाजी टेबल टेनिस टेनिस मुक्केबाजी कुश्ती भारोत्तोलन खेल शामिल हैं कुल 117 खिलाड़ी भाग ले रहे हैं जिसमें छह खिलाड़ी उत्तर प्रदेश के भी शामिल हैं इस बार भारत के जिन खेल और खिलाड़ियों में पदक पाने की सबसे अधिक आशा है उसमें पहले स्थान पर लक्ष्यवेध अर्थात निशानेबाजी दूसरे स्थान पर एथलेटिक्स तीसरे स्थान पर तीरंदाजी चौथे स्थान पर बैडमिंटन और कुश्ती है अन्य खेल जिसमें भारत पदक जीत सकता है उसमें हॉकी नौकायन टेबल टेनिस और भारत तोलन जैसे खेल शामिल हैं अब इनमें एक-एक करके विवेचना करते हैं


1-  तीरंदाजी सबसे पहले तीरंदाजी प्रतियोगिता की बात करते हैं यह भारत का बहुत प्राचीन खेल है और अर्जुन कर्ण भगवान श्री राम जैसे अचूक निशानेबाजों से इतिहास भरा पड़ा है पृथ्वीराज का शब्द वेधी बाण तो सभी जानते हैं इसमें भारत के पुरुष और महिला दोनों खिलाड़ियों ने व्यक्तिगत और टीम स्पर्धा में खेलने का सौभाग्य प्राप्त किया है यह देखा जाए तो तीरंदाजी में भारत दलीय स्पर्धा और व्यक्तिगत स्पर्धा में विश्व स्तर पर सर्वश्रेष्ठ टीम और खिलाडियों में शामिल हैं इसलिए अगर भारत सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करता है तो पुरुष और महिला तीरंदाजी में वह दो पदक टीम स्पर्धा में और दो पदक अधिकतम व्यक्तिगत स्पर्धा में कुल पांच पदक की आशा कर सकते हैं और कम से कम इसमें एक पदक प्राप्त होना सूनिश्चित दिख रहा है  क्योंकी इसमे चीन कोरिया अमेरिका फ्रांस जैसी विश्वस्तरीय टीमों के सामने  अपने ऊपर नियंत्रण और मार्ग शक्ति को देखना पड़ेगा जो भारतीय खिलाड़ियों में बहुत कम है 

2-एथलेटिक्स

 इसके बाद एथलेटिक्स की बात करते हैं जिसमें भारत का प्रदर्शन बहुत ही खराब और निराशाजनक रहा है और कुल प्राप्त पदक उंगलियों पर गिने जा सकते हैं यहां एक संजोग ही कहा जाएगा की एथलेटिक्स में ओलंपिक खेलों में भारत को एक पदक प्राप्त हुआ है और वह पीले रंग का अर्थात स्वर्ण पदक है इस बार एथलेटिक्स में एक बार फिर सारा दारोमदार विश्व और ओलंपिक चैंपियन नीरज चोपड़ा और उनके सहयोगी किशोर जेना पर रहेगा बाकी केवल दो ऐसे एथलेटिक्स खिलाड़ी रहे हैं जिन्होंने पदक तो नहीं पाया लेकिन उनकी चर्चा विश्व के स्वर्ण पदक प्राप्त खिलाड़ियों से भी ज्यादा है जिसमें पहले तो 1960 में रोम ओलंपिक में मिल्खा सिंह का चौथा स्थान पर रहना और फिर उड़न परी के नाम से मशहूर पीटी उषा का 1984 में चौथे स्थान पर रहना शामिल है इसके अलावा कई खिलाड़ी एथलेटिक्स के फाइनल तक तो पहुंचे लेकिन कोई पदक नहीं जीत पाए और इस बार भी एथलेटिक्स में अधिकतम दो पदक और कम से कम एक पदक भारत प्राप्त कर सकता है इससे अधिक ही आशा व्यर्थ हैं और अगर खिलाड़ी सेमीफाइनल या फाइनल में पहुंच जाते हैं तो यही भारत के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होगी 


3-बैडमिंटन 


बैडमिंटन में भारत ने अपनी उपस्थिति प्रकाश पादुकोण के समय से स्थापित की और साइना नेहवाल पीवी सिंधु रंकी रेडी सात्विक साइन राज लक्ष्य सेन प्रणय श्रीकांत जैसे खिलाड़ियों ने एक समय उसे विश्व के सर्वश्रेष्ठ स्तर पर पहुंचा दिया जिसमें प्रकाश साइना नेहवाल किदांबी श्रीकांत और पीवी सिंधु तो विश्व के नंबर एक खिलाड़ी भी रह चुके हैं पिछले बार पीवी सिंधु ने कारोलिना मारीन से हार कर रजत पदक जीता था इस बार अगर बैडमिंटन के खिलाड़ी चीन कोरिया इंडोनेशिया मलेशिया थाईलैंड डेनमार्क के खिलाड़ियों के बीच दो पदक प्राप्त कर ले तो बहुत बड़ी उपलब्धि होगी वैसे लगता है इस खेल में भारत अधिक से अधिक एक कांस्य  या रजक पदक प्राप्त कर सकता है

4- घुड़सवारी अगला खेल घुड़सवारी अर्थात असवारोहण है इस खेल में भारत को पदक की कोई आशा नहीं है पहली बार घुड़सवारी टीम द्वारा एक अच्छी स्थिति के साथ ओलंपिक में अर्हता प्राप्त की गई है अगर घुड़सवारी टीम फाइनल राउंड में पहुंच जाए तो यह भारत के लिए पदक जीतने के बराबर है इसके पहले मास्को ओलंपिक में भी भारत की घुड़सवारी टीम ने भाग लिया था लेकिन कुछ विशेष प्रदर्शन नहीं कर पाए थे

5- गोल्फ 

अगला खेल गोल्फ है जिसमें भारत भाग ले रहा है इसमें भी विश्वस्तरीय खिलाड़ियों के सामने भारतीय गोल्फर अगर शीर्ष 10 स्थान में जगह प्राप्त कर लेते हैं तो बहुत बड़ी उपलब्धि होगी पदक प्राप्त करने का तो गोल्फ में कोई प्रश्न ही नहीं है क्योंकि विश्व और ओलंपिक स्तर से हमारे गोलफर बहुत ही नीचे हैं वैसे इसमें भाग्य का भी बहुत बड़ा हाथ होता है


6- हाकी

 अगला खेल हॉकी है जिसमें भारत को बहुत बड़ी आशाएं रहती हैं और अघोषित रूप से भारत का राष्ट्रीय खेल है पिछले ओलंपिक में हॉकी टीम ने शानदार सफलता प्राप्त करते हुए पदक प्राप्त किया था इस बार हॉकी टीम से चमत्कार की आशा रहेगी और कम से कम भारत की टीम सेमीफाइनल तक पहुंच सकेगी और भाग्य ने साथ दिया तो एक पदक  टीम जीत सकती है हॉकी ही एकमात्र ऐसा खेल रहा है जिसने भारत को सबसे अधिक 8 स्वर्ण पदक दिलाए हैं और जिसके बल पर भारत हमें सब पदक तालिका में अपना स्थान बनाए रखता था 

7-जूडो

अगला खेल जिसमें भारत भाग ले रहा है वह जूडो का खेल है हाल के वर्षों में भारतीय जूडो खिलाड़ियों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ अच्छी सफलताएं प्राप्त की हैं लेकिन अंतरराष्ट्रीय और विश्व स्तर पर भारत के जूडो खिलाड़ी पदक प्राप्त कर सकेंगे इसमें संदेह है अगर भारत के जूडो खिलाड़ी कुछ मैच जीत लेते हैं तो यही भारत की बहुत बड़ी उपलब्धि रहेगी 


8- रोइंग

अगला खेल जिसमें भारतीय खिलाड़ी भाग ले रहे हैं वह रोइंग है इन खेलों में हाल के वर्षों में भारत ने अच्छा प्रदर्शन किया है और अगर समय और भाग्य तथा परिस्थितियों ने  साथ दिया और भारत के खिलाड़ी जी जान से खेले तो इसमें भी भारत को एक पदक की आशा हो सकती है वैसे इसमें फाइनल राउंड तक पहुंचना ही भारत के लिए उपलब्धि होगी 


9- सेलिंग 

अगला खेल जिसमें भारत के खिलाड़ी भाग ले रहे हैं वह सेलिंग है सेलिंग प्रतियोगिताएं बहुत कठिन होती हैं जिसमें अभूतपूर्व दम खम और इच्छा शक्ति तथा संकल्प की आवश्यकता होती है जो भारत के खिलाड़ियों में कम नहीं है लेकिन विश्व और ओलंपिक स्तर पर उनके प्रदर्शन कुछ खास नहीं है और ओलंपिक और विश्व रिकॉर्ड से भारत के खिलाड़ी बहुत दूर हैं अगर इसमें भी भारत फाइनल राउंड तक पहुंच जाता है तो यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि होगी बाकी ईश्वर की कृपा और चमत्कार पर निर्भर करता है


10- लक्ष्यवेध( निशानेबाजी)


अगला खेल जिसमें भारत की सबसे बड़ी आशाएं सबको प्राप्त हैं वह लक्ष्यवेध अर्थात निशानेबाजी या शूटिंग प्रतियोगिता है यह एक ऐसी प्रतियोगिता है जिसमें भारत ने व्यक्तिगत स्पर्धा में पहली बार अभिनव बिंद्रा के रूप में बीजिंग ओलंपिक में चीन अमेरिका रूस यूक्रेन और यूरोप के खिलाड़ियों की कड़ी स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतकर देश के खिलाड़ियों को संदेश दिया था कि हम भी इसमें बहुत कुछ कर सकते हैं इस बार भारत के खिलाड़ियों ने विश्व स्तर पर निशानेबाजी में बहुत बड़ी-बड़ी उल्लेखनीय सफलताएं प्राप्त किया है और भारत के पुरुष और महिला दोनों टीमें इसमें भाग ले रही हैं जिसमें मनु भाकर जैसी उदयीमान खिलाड़ी भी शामिल हैं यह एक ऐसा खेल है जिसमें भाग्य ने साथ दिया तो भारत व्यक्तिगत और टीम स्पर्धा मिलाकर अधिक से अधिक पांच और कम से कम दो पदक जीत सकता है जिसमें एक या दो स्वर्ण पदक हो सकते हैं बाकी सब परिस्थितियों और भाग्य पर निर्भर करता है


]11-  तीरंदाजी

 
 वैसे तीरंदाजी और एथलेटिक्स तथा शूटिंग ही ऐसी प्रतियोगिता है जिसमें भारत के खिलाड़ी विश्व स्तर पर हमेशा अच्छा खेल खेलते आए हैं इस बार भारत की पुरुष और महिला तीरंदाजी टीम में विश्व स्तर पर बहुत ही अच्छा प्रदर्शन किया है और यह आशा की जा सकती है की तीरंदाजी में अधिकतम पांच पदक और कम से कम एक पदक के साथ भारत इसमें अच्छा प्रदर्शन करेगा तीरंदाजी भारत का प्राचीन काल का खेल है जिसमें भगवान श्री राम अर्जुन करण जैसे धुरंधर तीरंदाजों का नाम विश्व विख्यात है

 11-12 टेनिस और टेबल टेनिस


टेनिस और टेबल टेनिस में भी इस बार भारत के खिलाड़ी भाग ले रहे हैं लेकिन विश्व और ओलंपिक स्तर पर उच्च क्लास के खिलाड़ियों के बीच में अगर वह सेमीफाइनल तक भी पहुंच जाए तो बहुत बड़ी बात होगी मनिका बत्रा के रूप में एक अद्भुत भारतीय खिलाड़ी है लेकिन पिछली बार वह क्वार्टर फाइनल में हार गई थी इन दोनों खेलों में अगर भाग्य साथ दे और परिस्थितियों अनुकूल रहे तो हम एक पदक की अधिकतम आशा कर सकते हैं 


13-मुक्केबाजी 

मुक्केबाजी एक ऐसा खेल है जिसमें भारत के खिलाड़ी विश्व स्तर पर तो हमेशा शानदार दमदार प्रदर्शन करते आए हैं लेकिन विश्व ओलंपिक खेलों में इनका प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा है विशेष करो ओलंपिक खेलों में तो भारतीय खिलाड़ी आज तक सेमीफाइनल में भी प्रवेश नहीं कर पाए हैं और भारत के खिलाड़ियों के साथ अन्याय भी बहुत होता रहा है इस बार अगर भाग्य साथ दे तो इसमें भारत पदक का श्री गणेश कर सकता है वैसे इसमें पदक की बहुत आशा करना उचित नहीं है 14-कुश्ती


 कुश्ती या मल्ल विद्या भारत की प्राचीनतम खेल विधाओं में से एक है जिसमें भारतीय खिलाड़ी एशियाई राष्ट्रमंडल विश्व ओलंपिक स्तर पर हमेशा श्रेष्ठ प्रदर्शन करते रहे हैं लेकिन इस बार की कुश्ती प्रतियोगिताओं में बहुत अधिक आशा नहीं है टोक्यो ओलंपिक में तो महान पहलवान सुशील कुमार स्वर्ण पदक प्राप्त करते-करते रह गए थे और दो पदक जीतने वाले वह एकमात्र भारतीय मल्ल हैं देश काल परिस्थितियां अनुकूल रही तो भारत के खिलाड़ी एक या दो पदक जीत सकते हैं विशेष कर विनेश फोगाट और रवि दहिया से कुछ आशा की जा सकती है दो पदक में एक कांस्य और स्वर्ण पदक भी हो सकता है 

15- भारोत्तोलन 

भारोत्तोलन खेलों में भारत ने विश्व और अंतरराष्ट्रीय स्तर तथा ओलंपिक स्तर पर भी अच्छा प्रदर्शन किया है मैरी कॉम और लवलीना बोरगोहन ने कांस्य और रजत पदक प्राप्त किया है इस बार भी भारोत्तोलन खेलों में भारत से अच्छे प्रदर्शन की आशा है और खिलाड़ी एक या दो पदक जीत सकते हैं 



उपसंहार 


भारत में खेलों की स्थिति कागजों पर अधिक और धरातल पर बहुत कम है खेल महासंघ में व्याप्त भ्रष्टाचार और यौन शोषण तथा सरकार का खेल और खिलाड़ियों पर ध्यान न देना और मीडिया द्वारा भी इसको केवल एक पन्ने या आधे पन्ने पर छाप देना और देश की जनता का केवल क्रिकेट में ध्यान देना अन्य खेलों पर ध्यान न देना ऐसे कारण है जो विश्व और ओलंपिक स्तर पर लंबे समय तक भारत की निराशाजनक कहानी दोहराते रहेंगे इस बार हम नीरज चोपड़ा किशोर जेना पीवी सिंधु लवलीना बोरगोहेन मनु भाकर निखत जरीन अमित पंघाल सिफत कौर सामरा विनेश कौर फोगाट लक्ष्य सेन मीराबाई चानू रिंकी रेड्डी चिराग शेट्टी लक्ष्य सेन पीवी सिंधु और इस प्रकार के कुछ अन्य खिलाड़ियों के चलते अधिक से अधिक 15 पदक जिसमें पांच स्वर्ण पदक हो सकते हैं और कम से कम 9 पदक जिसमें एक स्वर्ण पदक हो सकता है की आशा कर सकते हैं ईश्वर से प्रार्थना है कि इस बार भारत के खिलाड़ी पांच स्वर्ण सहित 15 पदक प्राप्त करके सर्वश्रेष्ठ 20 देशों के कतार में शामिल हो चलते-चलते आपको बता दें कि अभी तक भारत केवल एक बार ओलंपिक खेलों में विश्व में 17वें स्थान पर रहा है बाकी हर बार यह सर्वश्रेष्ठ 20 देश के बाहर ही रहा है अगर इस बार भारत सर्वश्रेष्ठ 15 देश में आ जाए तो यह बड़ी उपलब्धि होगी क्योंकि खेलो इंडिया का कार्यक्रम केवल कागजों पर ही चल रहा है और हाल में अनेक खेलों में हुए चयन में भेदभाव और सुविधाओं का अभाव एवं यौन शोषण में भारतीय खिलाड़ियों के ओलंपिक में प्रदर्शन को गहरे तक प्रभावित किया है ऐसा देखा गया है कि सरकारी सहायता प्राप्त कोई भी खिलाड़ी ओलंपिक या विश्व स्तर पर एशिया या कॉमनवेल्थ में पदक पाने में असफल रहा है जो खिलाड़ी स्वयं अपना खेत मकान आभूषण बेचकर फटेहाल स्थिति में जाते हैं वही बड़ी सफलताएं प्राप्त कर पाते हैं अब देखना है पेरिस ओलंपिक भारत के लिए कितना सुनहरा सिद्ध होता है

राजा के दरबार में.एक आदमी नौकरी मांगने के लिए आया! तो उस व्यक्ति से उसकी क़ाबलियत पूछी गई।तो वो बोला-मैं आदमी हो चाहे जानवर, उसकी शक्ल देख कर उसके बारे में बता सकता हूँ.!

राजा के दरबार में.
एक आदमी नौकरी मांगने के लिए आया! तो उस व्यक्ति से उसकी क़ाबलियत पूछी गई।
तो वो बोला-
मैं आदमी हो चाहे जानवर, उसकी शक्ल देख कर उसके बारे में बता सकता हूँ.!
राजा ने उसे अपने खास "घोड़ों के अस्तबल का इंचार्ज" बना दिया।
कुछ ही दिन बाद राजा ने उससे अपने सब से महंगे और मनपसन्द घोड़े के बारे में पूछा, तो उसने कहा..
घोड़ा नस्ली नही है.!
राजा को हैरानी हुई,
उसने जंगल से घोड़े वाले को बुला कर पूछा, उसने बताया घोड़ा नस्ली तो हैं, पर इसके पैदा होते ही इसकी मां मर गई थी।
इसलिए ये एक गाय का दूध पी कर उसके साथ पला बढ़ा है।
राजा ने अपने नौकर को बुलाया और पूछा तुम को कैसे पता चला के घोड़ा नस्ली नहीं हैं??
"उसने कहा- "जब ये घास खाता है तो गायों की तरह सर नीचे करके खाता है, जबकि नस्ली घोड़ा घास मुह में लेकर सर उठा लेता है।
राजा उसकी काबलियत से बहुत खुश हुआ,
उसने नौकर के घर अनाज ,घी, मुर्गे, और ढेर सारी बकरियां बतौर इनाम भिजवा दिए।
और अब उसे रानी के महल में तैनात कर दिया।

कुछ दिनो बाद राजा ने उससे रानी के बारे में राय मांगी,

उसने कहा,

"तौर तरीके तो रानी जैसे हैं, लेकिन पैदाइशी नहीं हैं।

राजा के पैरों तले जमीन निकल गई, उसने अपनी सास को बुलाया,
सास ने कहा..
ये हक़ीक़त है कि आपके पिताजी ने मेरे पति से हमारी बेटी की पैदाइश पर ही रिश्ता मांग लिया था,लेकिन हमारी बेटी 6 महीने में ही मर गई थी, लिहाज़ा हम ने आपके रजवाड़े से करीबी रखने के लिए किसी और की बच्ची को अपनी बेटी बना लिया।
राजा ने फिर अपने नौकर से पूछा,
"तुम को कैसे पता चला??
""उसने कहा-
"रानी साहिबा का नौकरो के साथ सुलूक गंवारों से भी बुरा है,
एक खानदानी इंसान का दूसरों से व्यवहार करने का एक तरीका होता है,
जो रानी साहिबा में बिल्कुल नही है।
राजा फिर उसकी पारखी नज़रों से खुश हुआ,
और फिर से बहुत सारा अनाज भेड़ बकरियां बतौर इनाम दी।
साथ ही उसे अपने दरबार मे तैनात कर लिया!
कुछ वक्त गुज़रा,

राजा ने फिर नौकर को बुलाया, और अपने बारे में पूछा,
नौकर ने कहा
"जान की सलामती हो तो कहूँ”
राजा ने वादा किया तो उसने कहा, "न तो आप राजा के बेटे हो"
और न ही आपका चलन राजाओं वाला है।
राजा को बहुत गुस्सा आया,
मगर जान की सलामती का वचन दे चुका था, राजा सीधा
अपनी मां के महल पहुंचा...मां ने कहा,
ये सच है,
तुम एक चरवाहे के बेटे हो, हमारी औलाद नहीं थी, तो तुम्हे गोद लेकर हम ने पाला।
राजा ने नौकर को बुलाया और पूछा,
बता, "भोई वाले तुझे कैसे पता चला???
उसने कहा
जब राजा किसी को "इनाम दिया करते हैं, तो हीरे मोती और जवाहरात की शक्ल में देते हैं।
लेकिन आप भेड़, बकरियां, खाने पीने की चीजें दिया करते हैं।
ये रवैया किसी राजा का नही, किसी चरवाहे के बेटे का ही हो सकता है।
किसी इंसान के पास कितनी धन दौलत, सुख समृद्धि, रुतबा, बाहुबल हैं ये सब बाहरी दिखावा हैं।
इंसान की असलियत की पहचान,

उसके व्यवहार और उसकी नियत से होती है।

अपनी पहली जीत के बाद आराम न करें क्योंकि अगर आप दूसरी बार असफल हो जाते हैं, तो अधिक लोग यह कहने के लिए इंतज़ार कर रहे होते हैं कि आपकी पहली जीत सिर्फ किस्मत थी।" (कलाम)

*ए पी जे अब्दुल कलाम* *मेरी नजर में* *फरहत अली खान* 
"अपनी पहली जीत के बाद आराम न करें क्योंकि अगर आप दूसरी बार असफल हो जाते हैं, तो अधिक लोग यह कहने के लिए इंतज़ार कर रहे होते हैं कि आपकी पहली जीत सिर्फ किस्मत थी।" (कलाम) 
          अवुल पाकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम को एपीजे के नाम से जाना जाता है। अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में एक तमिल मुस्लिम परिवार में हुआ था। अपने स्कूल के वर्षों में, कलाम के ग्रेड औसत थे लेकिन उन्हें एक प्रतिभाशाली और मेहनती छात्र के रूप में वर्णित किया गया था जिसमें सीखने की तीव्र इच्छा थी। बचपन से ही, कलाम का परिवार गरीब हो गया था, जिसके कारण उन्हें अपने परिवार की आय के लिए अखबार बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा। स्नातक करने के बाद वह 1955 में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग का अध्ययन करने के लिए मद्रास चले गए। रक्षा अनुसंधान एवं विकास सेवा (डीआरडीएस) के सदस्य बनने के बाद कलाम एक वैज्ञानिक के रूप में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन के वैमानिकी विकास प्रतिष्ठान में शामिल हुए। उनके सफल प्रयासों के कारण उन्हें बैलिस्टिक मिसाइल और लॉन्च वाहन प्रौद्योगिकी के विकास पर उनके काम के लिए भारत के मिसाइल मैन के रूप में जाना जाने लगा। भारत के मिसाइल और परमाणु हथियार कार्यक्रमों के विकास में अग्रणी भूमिका निभाने वाले एकमात्र भारतीय मुस्लिम वैज्ञानिक अब्दुल कलाम ने कभी इसका घमंड नहीं किया। कलाम के लिए जीवन भर धर्म और अध्यात्म बहुत महत्वपूर्ण रहे। वास्तव में, उन्होंने अपनी आध्यात्मिक यात्रा को अपनी अंतिम पुस्तक, ट्रान्सेंडेंस: माई स्पिरिचुअल एक्सपीरियंस विद प्रमुख स्वामीजी को विषय बनाया।
        2002 में भारत के सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबंधन (एनडीए) निवर्तमान राष्ट्रपति कोचेरिल रमन नारायणन के उत्तराधिकारी के रूप में कलाम को नामित किया। जनता के बीच कलाम का कद और लोकप्रियता ऐसी थी कि उन्हें एक हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी (भाजपा) द्वारा नामांकित किया गया था और यहां तक कि मुख्य विपक्षी दल, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भी उनकी उम्मीदवारी का समर्थन किया था। कलाम ने आसानी से चुनाव जीत लिया और जुलाई 2002 में भारत के 11वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। राष्ट्रपति बनने के बाद भी, वह भारत को एक विकसित देश में बदलने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के लिए प्रतिबद्ध रहे।
      एक स्वाभिमानी और धार्मिक मुसलमान होने के नाते, रमज़ान के दौरान दैनिक नमाज़ और उपवास कलाम के जीवन का अभिन्न अंग थे। उनके पिता, जो उनके गृहनगर रामेश्वरम में एक मस्जिद के इमाम थे, ने अपने बच्चों में इन इस्लामी रीति-रिवाजों को सख्ती से स्थापित किया था। उनके पिता ने भी युवा कलाम को अंतर-धार्मिक सम्मान और संवाद के मूल्य से अवगत कराया था। जैसा कि कलाम को याद था: "हर शाम, मेरे पिता ए.पी. जैनुलाब्दीन, एक इमाम, रामनाथस्वामी हिंदू मंदिर के मुख्य पुजारी पक्षी लक्ष्मण शास्त्री, और एक चर्च पुजारी के साथ गर्म चाय पीने के लिए साथ बैठते थे और द्वीप से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करते थे। इस तरह के शुरुआती प्रदर्शन ने कलाम को आश्वस्त किया कि भारत के कई मुद्दों का उत्तर देश के धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक नेताओं के बीच "बातचीत और सहयोग" में निहित है। इसके अलावा, चूंकि कलाम का मानना था कि "अन्य धर्मों के लिए सम्मान" कुंजी में से एक था। इस्लाम की आधारशिला के बारे में उन्हें यह कहने का शौक था: "महान लोगों के लिए, धर्म दोस्त बनाने का एक तरीका है; छोटे लोग धर्म को लड़ाई का हथियार बना देते हैं।”
       कलाम ने सांप्रदायिक सद्भाव और अन्य धर्मों के साथ जीवंत संबंधों का एक सुंदर उदाहरण स्थापित किया। उन्होंने हमेशा राष्ट्र को पहले स्थान पर रखा और अपने जीवन के अंतिम दिन तक सक्रिय रहे। उन्हें 27 जुलाई 2015 को भारतीय प्रबंधन संस्थान शिलांग में एक व्याख्यान देने के लिए निर्धारित किया गया था। अपने व्याख्यान के केवल पांच मिनट बाद, वह गिर गए और उन्हें बेथनी अस्पताल ले जाया गया जहां अचानक हृदय गति रुकने से उनकी मृत्यु की पुष्टि की गई। कलाम हमारे देश के उन मुसलमानों में से एक थे जिन्होंने प्रगतिशील, विकसित और नये भारत के बीज बोये। उनके शब्द उनके प्रयासों को दर्शाते हैं - "अगर सफल होने का मेरा दृढ़ संकल्प पर्याप्त मजबूत है तो विफलता कभी भी मुझ पर हावी नहीं होगी"। यह वह संदेश है जो प्रत्येक भारतीय को, चाहे वह किसी भी धर्म का हो, विरासत में मिलना चाहिए।
विषेश:
अवुल पकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम जो मिसाइल मैन जिनका जन्म 15 अक्टूबर 1931रामेश्वरम, रमानाथपुरम जिला, तमिलनाडु एवम मृत्यु 83 वर्ष की उम्र में 27 जुलाई 2015 शिलोंग, मेघालय में हुई।
ये भारतीय गणतंत्र के ग्यारहवें निर्वाचित राष्ट्रपति थे। वे भारत के पूर्व राष्ट्रपति, जानेमाने वैज्ञानिक और अभियंता (इंजीनियर) के रूप में विख्यात थे। उन्होंने सिखाया जीवन में चाहें जैसे भी परिस्थिति क्यों न हो पर जब आप अपने सपने को पूरा करने की ठान लेते हैं तो उन्हें पूरा करके ही रहते हैं। अब्दुल कलाम मसऊदी के विचार आज भी युवा पीढ़ी को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं।
इन्होंने मुख्य रूप से एक वैज्ञानिक और विज्ञान के व्यवस्थापक के रूप में चार दशकों तक रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) संभाला व भारत के नागरिक अंतरिक्ष कार्यक्रम और सैन्य मिसाइल के विकास के प्रयासों में भी शामिल रहे। इन्हें बैलेस्टिक मिसाइल और प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी के विकास के कार्यों के लिए भारत में 'मिसाइल मैन' के रूप में जाना जाता है।
फरहत अली खान 
एम. ए. गोल्ड मैडलिस्ट

मैं कई दिन से देख रहा था, कि मेरे एक छोटे से शहर में और 1 किलोमीटर के एरिया में कम से कम 4 ऐसे छोटी दुकानें और कैफे खुले हैं जो ये खाना देते हैं जिन्हे हम फास्ट फूड कहते हैं!और मजे के बात ये है की इन सभी रेस्टुरेंट और कैफे के मेनू सेम थे प्राइस भी बराबर थे और इसमें 4 5 तरह के पिज्जा, 3 4 तरह के बर्गर रैप रोल और फ्रेंच फ्राइज़ थे!

मैं कई दिन से देख रहा था, कि मेरे एक छोटे से शहर में और 1 किलोमीटर के एरिया में कम से कम 4 ऐसे छोटी दुकानें और कैफे खुले हैं जो ये खाना देते हैं जिन्हे हम फास्ट फूड कहते हैं!
और मजे के बात ये है की इन सभी रेस्टुरेंट और कैफे के मेनू सेम थे प्राइस भी बराबर थे 
और इसमें 4 5 तरह के पिज्जा, 3 4 तरह के बर्गर 
रैप रोल और फ्रेंच फ्राइज़ थे!

मेरे घर बच्चे आए थे तो सोचा यही कहीं से लेते हैं 
और घुसा दुकान में, और जबतक वो फ्रेंच फ्राई बना रहा था तब तक मैं खड़ा था!

देखा एक बड़े फ्रीजर में से पहले से कटे आलू निकाला और उसे तेल में डाल दिया, 
मैने बोला ताजा नही काटते क्या?
उसने बोला अरे नही ये कटा कटाया आता है बस फ्राई कर के देदो 
मैने बोला ताजा आलू भी तो तुरंत काट सकते हो तो उसने बोला ये आलू अलग है सस्ता होता है उसे प्रोसेस कर के ऐसा बनाया जाता हैं की कितने भी गर्म तेल में डालें ये एकदम गोल्डन होते हैं दिखने में अच्छे और खाने में कुरकुरा!

फिर पिज़्ज़ा की बारी आती है, तो देखा पहले से बना बनाया ब्रेड लिया और उसपे रेडीमेड souce डाली फिर लिक्विड चीज, फिर प्रोसेस चीज डाल दी और बेक कर के दे दिया!

मैने बोला यार सब रेडीमेड है कुछ खुद नही करना पढ़ता।
तो मुंह में गुटका दबाए वो बोलता है 
नही सारी व्यवस्था टंच है सारा माल कंपनी का है!

आइए दिखाते हैं, जब देखा तो तो दिमाग घूम गया था!
1 किलो के पैकेट जिसमे पिज़ा souce मेयोनीज, चीज आदि थे 
और वो सब राइस ब्रायन ऑयल कॉटन सीड ऑयल के मिश्रण से मिले थे 
टमाटर से बनने वाले souce में टमाटर pulp मात्र 20 प्रतिशत था 
और बाकी 80 % में oil प्रिजर्वेटिव रंग आर्टिफिशियल फ्लेवर थे 

ऐसे ही फ्रेंच फ्राई के आलू भी महीना भर पहले डीप फ्रीज किए गए थे!
प्रोसेस कर के उसमे से स्टार्च निकाला गया था, और काफी ज्यादा मात्रा में खराब ना होने वाली दवाई पड़ी थी !

क्यों की आलू को यदि काट कर रख दें तो तुरंत ऑक्सीजन से क्रिया कर के काला पड़ने लगता है 
लेकिन ये आलू महीनो बाद भी वैसा ही है!

अब सोचिए जो बच्चे हर दूसरे दिन ये जहर खा रहे हैं उनके स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ेगा ?? 

पेपर में न्यूज आती है दिल्ली में 8 में पढ़ने वाले लड़के की हार्ट attak se maut लेकिन कभी सुना है की कोई गरीब या गांव में रहने वाले लड़के को ऐसा हुआ है!

लोग वैक्सीन को दोष दे रहे थे, लेकिन मुझे लगता है सच्चाई कुछ और है!

इसे बेचने वाले खुद नही जानते की खाने के नाम पर वो जहर बेच रहे हैं,  वो तो बस चंद मुनाफे और अपने परिवार का पेट पालने के लिए ये कर रहे, 
और उन्हें भी पता है इसकी डिमांड है!

क्योंकि हर कैफे के बाहर स्कूल में पढ़ने वाले और कॉलेज जाने वाले बच्चे खड़े होते हैं लाइन लगा कर!

तो ये बच्चो के पैरेंट्स की जिम्मेदारी है की वो।इस जहर के बारे में अपने बच्चो को बताएं!
नही तो यकीन मानिए आपके बच्चो के लिए स्थिति बहुत ही बदतर और भयावह होने वाली है!

इसे ज्यादा से ज्यादा लोगो तक शेयर करें जितना जल्दी हो सके क्यों की ऐसी खाने वाली पोस्ट रिपोर्ट मार कर डिलीट करवा दी जाती है 
जिससे ये जहर बनाने वालो का धंधा चलता रहे.
#photochallenge #photographychallenge #photographychallengechallenge

#घोड़खिंड की लड़ाई! अधिकांश लोगों ने संभवतः यह नाम ही नहीं सुना होगा! कक्षा दसवीं तक पढ़ाए जाने वाले इतिहास में इस लड़ाई को स्थान नहीं दिया गया है। परन्तु, 350 वर्षों से भी पूर्व लड़ी गई इस #लड़ाई ने एक तरह से #भारत का भविष्य बदल कर रख दिया। फिर भी इसे बच्चों को पढ़ाया नहीं जाता क्योंकि शायद #भारतीय #विजयगाथाओ को पढ़ने लायक #इतिहास माना ही नहीं गया।

#घोड़खिंड की लड़ाई! 

अधिकांश लोगों ने संभवतः यह नाम ही नहीं सुना होगा! कक्षा दसवीं तक पढ़ाए जाने वाले इतिहास में इस लड़ाई को स्थान नहीं दिया गया है। परन्तु, 350 वर्षों से भी पूर्व लड़ी गई इस #लड़ाई ने एक तरह से #भारत का भविष्य बदल कर रख दिया। फिर भी इसे बच्चों को पढ़ाया नहीं जाता क्योंकि शायद #भारतीय #विजयगाथाओ को पढ़ने लायक #इतिहास माना ही नहीं गया। 

शिवाजी महाराज द्वारा अफ़ज़ल ख़ान को मौत के घाट उतार देना एक #अकल्पनीय घटना थी। अफ़ज़ल के सुल्तान #बीजापुर के आदिलशाह के लिए यह एक गहरा आघात था। #शिवाजी_महाराज भी इस विजय के प्रभाव को समझते थे। उन्होंने #अफ़ज़ल के वध से उत्पन्न परिस्थिति का लाभ उठाते हुए बीजापुर की सीमाओं में अपने हमले तेज कर दिए। मात्र अठारह दिनों के अन्दर ही महाराज ने कोल्हापुर के नजदीक पन्हाला के किले को अपने अधिपत्य में ले लिया। पन्हाला एक प्रमुख किला था और शिवाजी का उसे जीत लेना आदिलशाह के लिए एक और आघात था। परेशान आदिलशाह ने अफ़ज़ल के पुत्र फ़ज़ल और रुस्तम जुमा के नेतृत्व में एक बड़ी सेना शिवाजी के बंदोबस्त के लिए भेजी परन्तु शिवाजी महाराज ने उन्हे कोल्हापुर के नजदीक बुरी तरह पराजित कर दिया। 

अब आदिलशाह क्रोधित नहीं बल्कि डरा हुआ था। शिवाजी महाराज का पराक्रम बढ़ता जा रहा था। अंततः आदिलशाह की ओर से सिद्धि जौहर 60000 की विशाल सेना लेकर पन्हाला पहुंचा। शिवाजी महाराज पन्हाला गढ़ पर ही थे। सिद्धि ने नीचे तलहटी में गढ़ को चारों ओर से घेर लिया। सिद्धि कुशल सेना नायक था। उसने गढ़ के चारों ओर घेरा इतना सुदृढ़ बनाया था कि उसे भेद कर निकलना असंभव था। शिवाजी महाराज करीब चार महीनों तक पन्हाला पर ही अटके हुए थे। इसी बीच बारिश का मौसम भी शुरू हो चुका था। 

गढ़ के ऊपर शिवाजी महाराज के पास बहुत सीमित सेना थी। धीरे धीरे रसद और असलहा भी समाप्त हो रहा था। स्थिति प्रत्येक गुजरते दिन के साथ गंभीर होती जा रही थी। सिद्धि का घेरा कमजोर पड़ ही नहीं रहा था। स्पष्ट था कि यदि कुछ दिन और ऐसा ही चलता रहा तो शिवाजी महाराज को या तो समर्पण करना होगा या युद्ध में #वीरगति को प्राप्त हो जाना होगा। 

इस करो या मरो की स्थिति में शिवाजी महाराज और उनके विश्वासपात्र सैनिकों ने एक योजना बनाई। तय हुआ कि शिवाजी का हमशक्ल, उनका नाई, शिवा काशिद, को शिवाजी महाराज के कपड़े इत्यादि पहना कर राजसी पालकी में बैठा कर ऐसे रास्ते से किले के बाहर ले जाया जाएगा जहां उसका पकड़ में आना तय था। ऐसा होते ही सिद्धि की छावनी में यह ख़बर फैल जाएगी कि शिवा पकड़ा गया! शिवा काशिद जब तक हो सके यह भ्रम बनाए रखेगा कि वह ही असली शिवाजी है। उधर दूसरी ओर असली शिवाजी महाराज साढ़े कपड़ों में एक अन्य पालकी में ऐसे स्थान से पन्हाला के बाहर निकलेंगे जहां सिद्धि का घेरा थोड़ा कमजोर था। घेरे से बाहर निकल कर शिवाजी विशाल गढ़ चले जायेंगे जो पन्हाला से बीस कोस याने लगभग 70 किमी दूर था। 

सन 1660 में गुरुपूर्णिमा की रात्रि में शिवा काशिद शिवाजी महाराज बनकर एक पालकी में बैठकर पन्हाला से निकल पड़ा। उसे यह अच्छी तरह पता था कि असलियत खुलते ही उसकी मौत निश्चित थी। परन्तु महाराज की प्राण रक्षा के लिए उसने यह #बलिदान सहर्ष स्वीकार किया था। जो होना था वही हुआ। शिवा शीघ्र ही पकड़ा गया। पूरी छावनी में खबर आग की तरह फैल गई, “शिवा पकड़ा गया”। परन्तु कुछ ही देर में शत्रु समझ गया कि यह नकली शिवाजी है। उधर महाराज जिस जगह से घेरा तोड़ने में सफल हुए वहां से भी खबर आ गई कि शिवा भाग चुका है। तुरन्त ही शत्रु के करीब 2000 से अधिक घुड़सवार सैनिक असली शिवाजी और उनके 600 सैनिकों के पीछे दौड़ पड़े। शिवाजी महाराज पालकी में थे। अन्य सैनिक और अधिकारी पैदल ही चल रहे थे। पूर्णमासी की उस रात धुआंधार वर्षा भी हो रही थी। घटाटोप अंधेरा, घना जंगल और कीचड़। कहार तेजी से आगे नहीं बढ़ पा रहे थे। शिवाजी के साथ बाजीप्रभु देशपांडे नामक #सेनानायक अपने 600 वीरों के साथ चल रहा था। सुबह होते होते मराठे घोड़खिंड़ के नजदीक पहुंचे। घोढ़खिंड दो चट्टानी दीवारों के मध्य एक संकरा गलियारा था। दिन के उजाले में अब पीछा करता शत्रु नजर आने लगा था। 

बाजीप्रभू ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए शिवाजी महाराज को निवेदन किया कि बेहतर होगा कि महाराज आधे सैनिकों के साथ पैदल विशालगढ़ की और बढ़ जाए। वहां भी शत्रु का घेरा था परन्तु सिद्धि के घेरे जितना सुदृढ़ नहीं था। शिवाजी महाराज और उनके सैनिक उस घेरे को तोड़ विशाल गढ़ पहुंच जायेंगे। इधर बाजीप्रभु देशपांडे अपने सैनिकों के साथ सिद्धि के सैनिकों को घोढ़खिंड की भौगोलिक स्थिति का लाभ ले कर रोक कर रखेंगे। जब महाराज विशालगढ़ पहुंच जाएं तब गढ़ की तोप से इशारे का एक प्रहार कराएं जिससे बाजीप्रभु समझ जायेंगे कि महाराज सकुशल विशालगढ़ पहुंच चुके है। यह प्रसंग शिवाजी महाराज के लिए अत्यन्त कठिन और असहनीय था। बाजीप्रभू और उनके सैनिकों को छोड़ कर जाने का सीधा मतलब था उन्हे मौत के हवाले कर जाना। 2000 सैनिकों के सामने आखिर 300 सैनिक कहां तक टिकते? परन्तु बाजीप्रभु अड़ गए। उन्होंने शिवाजी महाराज को मजबूर किया कि वें 300 सैनिकों के साथ पैदल ही विशालगढ़ की ओर बढ़ जाएं। ऐसा ही हुआ। 

अब बाजीप्रभु और उनके कुछ बहादुर सैनिक घोढ़खिंड के गलियारे के छोर पर शत्रु के सैनिकों से भिड़ गए। 2000 के सामने 300! गलियारे का लाभ उठाते हुए मराठों ने अद्भुत पराक्रम का प्रदर्शन किया और सिद्धि के सैनिकों को रोक लिया। कत्लेआम मचा हुआ था। आमने सामने की लड़ाई चल रही थी। बाजीप्रभू ने पराक्रम की पराकाष्ठा दिखा दी। दोनों हाथों में तलवारें लिए यह भीमकाय योद्धा शत्रु सैनिकों को गाजर मूली की तरह काट रहा था। बाजी और उनके सैनिक सिद्धि के सैनिकों पर यमदूत की भांति टूट पड़े थे। मात्र 150 कदम के घोढ़खिंड गलियारे को सिद्धि के सैनिक पार नहीं कर पा रहे थे। मराठे सैनिक बगैर विश्राम या अन्न भोजन के रात भर से दौड़ रहे थे। अब सुबह से वे घोड़खिंड के मुहाने पर चट्टान की भांति अड़े हुए थे। 

उधर शिवाजी महाराज पैदल अपने सैनिकों के साथ विशालगढ़ की ओर बढ़ रहे थे। रास्ते में आदिलशाह के सरदार सुर्वे का घेरा था। शिवाजी और उनके सैनिक भी रात भर से बिना अन्न भोजन के चल दौड़ रहे थे। परन्तु विशालगढ़ नजर आने लगा था। सभी के शरीर में नई ऊर्जा का संचार हो कर वे शत्रु सैनिकों पर टूट पड़े। कुछ ही देर में उन्होंने घेरे को तोड़ विशालगढ़ चढ़ना शुरू कर दिया था। 

इधर घोड़खिंड़ में खून को होली चल रही थी। बंदूक का एक प्रहार सीने पर आ लगने से बाजीप्रभु मूर्छित हो कर गिर गए। तुरन्त ही होश में आए। होश में आते ही पूछा कि महाराज के पहुंचने की तोप की आवाज आई क्या? साथ के सैनिकों के कहा कि अभी तक नही आई है! कहते हैं, कि बुरी तरह घायल बाजी यह सुनते ही पुनः उठ खड़े हुए और यह कहते हुए शत्रु सैनिकों पर टूट पड़े कि यदि महाराज पहुंचे नहीं तो बाजी मरेगा कैसे? कुछ ही देर बाद, महाराज दौड़ते हुए विशालगढ़ पहुंचे। उन्होंने गढ़ की सीढ़ियां चढ़ते चढ़ते ही आदेश दिया कि तोप से धमाका किया जाय। आदेश का तुरन्त पालन हुआ। नीचे लड़ते हुए बाजीप्रभु देशपांडे ने तोप के धमाके की आवाज सुनी और उनके चेहरे पर संतोष की मुस्कान छा गई। शिवाजी महाराज सकुशल विशालगढ़ पहुंच चुके थे। सिद्धि का हमला असफल सिद्ध हो चुका था। बीजापुर के आदिलशाह को एक और जबरदस्त आघात पहुंचा था। अब बाजीप्रभु मर सकता था। 

300 मराठे खेत रहे। परन्तु उन्होंने कुछ बेशकीमती घण्टों तक सिद्धि जौहर की सेना को घोड़खिंड तक रोक रखा था। शिवाजी महाराज जीवित सिद्धि के घेरे से निकल गए थे। अगले बीस वर्षों में शिवाजी महाराज ने हिंदवी साम्राज्य की नींव तो रखी ही, योद्धाओं की एक ऐसी संस्कृति विकसित की जिसने आने वाले दशकों में छत्रपति संभाजी, ताराबाई, संताजी घोरपड़े, धनाजी जाधव और बाजीराव पेशवा जैसे अनमोल रणवीर उत्पन्न किए, जिन्होंने अगले 120 से भी अधिक वर्षों तक भारत के विशाल भाग पर राज्य किया और सनातन के क्षरण को रोक हिन्दू संस्कृति का ध्वज लहराया। 

मराठों का अगले 120 वर्षों का गौरवशाली इतिहास शायद लिखा ही नहीं जाता यदि 13 जुलाई 1660 की उस गुरुपूर्णिमा को शिवा काशिद, बाजीप्रभु देशपांडे और उनके सैनिक अपने प्राण न्योछावर कर शिवाजी महाराज के प्राण नहीं बचाते! महाराज ने मराठों के रक्त से पावन हुए इस गलियारे का नाम बदल कर पावनखिंड कर दिया। 

आज 13 जुलाई के ही दिन सन 1660 में सर्वोच्च बलिदान देने वाले शिवा काशिद,  अतुलनीय पराक्रमी बाजीप्रभु देशपांडे और उनके 300 जांबाज सैनिकों और कहारों को सादर प्रणाम। उन्होंने सिर्फ शिवाजी को ही नहीं अपितु समस्त सनातन समाज को ही नजीवन प्रदान किया यह असंदिग्ध है।

Friday, 26 July 2024

तोपों की भी अपनी कहानी होती है। तोप कहाँ से चले, कहाँ पहुंचे, इसे देखते ही युद्धों के चलने-पलटने का बहुत कुछ पता चलता है। जो प्रसिद्ध सा शेर बहादुर शाह जफर को सुनाने के लिए याद किया जाता है – “दमदमे में दम नहीं...”

तोपों की भी अपनी कहानी होती है। तोप कहाँ से चले, कहाँ पहुंचे, इसे देखते ही युद्धों के चलने-पलटने का बहुत कुछ पता चलता है। जो प्रसिद्ध सा शेर बहादुर शाह जफर को सुनाने के लिए याद किया जाता है – “दमदमे में दम नहीं...” उसमें जो दमदमा होता है, वो मुगल तोप होती थी। ऐसी ही एक प्रसिद्ध तोप थी “बसीलिक”। इस तोप का किस्सा तब शुरू होता है, जब तोपों का दौर शुरू ही हुआ था। कांस्टेंटीनोपोल पर उस समय कांस्टेंटीन (ग्यारहवें) का शासन था और ओर्बन (या अर्बन) नाम का एक अभियंता (लोहार) कांस्टेंटीन के पास पहुंचा। वो बहुत सी तोपों का नक्शा साथ लेकर आया था और उन तोपों को कांस्टेंटीन के लिए बनाना चाहता था। समस्या ये थी कि तोपें उस समय नयी चीज थी, और कांस्टेंटीन को समझ नहीं आया कि इस विचित्र नए हथियार का उसके लिए क्या उपयोग है?

ये 1452 का दौर था और तीर-तलवार लिए सेनाएं उस समय में आमने सामने लड़ती थीं। ये काफी कुछ भारत के ही जैसी समझ थी, जिसमें वीरतापूर्वक शत्रु से आमने सामने लड़ेंगे, इतनी दूर से ही दुश्मन को मार गिराने में क्या बहादुरी है, वाली सोच आती थी। नहीं लेना नया हथियार वाली सोच में कांस्टेंटीन बिलकुल भारतीय लोगों जैसे ही थे, बस उनका कारण ये था कि इतना महंगा हथियार क्यों लें? एक लोहार को इतने-इतने पैसे भला क्यों दिए जाएँ? फिर कांस्टेंटीन को ये भी लगता था कि कांस्टेंटीनोपोल की दीवारें इतनी मोटी हैं कि कोई सेना उसे भेद नहीं सकती। कांस्टेंटीन (ग्यारहवें) के पास से निराश होकर ओर्बन महमद द्वित्तीय के पास गया। उथमान (ऑट्टोमन) सल्तनत का महमद द्वित्तीय उस समय कांस्टेंटीनोपोल पर ही हमले की तैयारी कर रहा था।

महमद द्वित्तीय ने ओर्बन को मुंहमांगी रकम दी और तोपें तैयार करने कहा। दूसरी छोटी तोपों के साथ एक बड़ी तोप बसीलिक इस तरह बनकर तैयार हुई। इस तोप को बनाने में ओर्बन को केवल तीन महीने लगे थे। पुराने दौर की तोप थी, दागते ही गर्म हो जाती थी, इसलिए इसे दिन में तीन बार ही चलाया जा सकता था। ठंडा करने के लिए इसपर तेल इत्यादि डालते थे। इस 24 फीट लम्बी तोप को खींचकर यहाँ-वहाँ ले जाने के लिए 60-90 बैल और सैंकड़ों लोग लगते थे। ये तोप करीब 550 किलो का गोला, डेढ़ किलोमीटर दूर, निशाने पर दाग सकती थी। पांच-पांच सौ किलो के गोले जिस दिवार पर दागे जा रहे हों, वो कितनी देर टिकेगी, इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं है। अगले वर्ष यानी 29 मई 1453 में कांस्टेंटीनोपोल से बायजेंटीन साम्राज्य का अंत हो गया। करीब 53 दिनों की लड़ाई के बाद कांस्टेंटीन (ग्यारह) युद्ध हारकर, संधि में अपना सबकुछ उथमान साम्राज्य को सौंपकर रवाना हुआ।

युद्ध है तो हथियार बदलते हैं। हथियार बनाने-चलाने वाले मुफ्त में भी नहीं आते। फोर्थ जनरेशन वॉरफेयर में सुचना क्रांति का युद्ध होता है। इसमें नैरेटिव बिलकुल तोपों की तरह ही काम करता है। न नैरेटिव बनाना सस्ता काम होता है, न उसे चलाना। कांवड़ यात्रा में दुकानों पर नाम लिखना हो या बिहार के विशेष राज्य के दार्जे की मांग, सब नैरेटिव की लड़ाइयाँ हैं। तोपें बनाने-चलाने वाले आपकी तरफ होंगे या विपक्षी की तरफ, ये तो आपको ही तय करना है!

#Cannon #Narrative
#FourthGenerationWarfare

ये साईकिल से आ रही कोई साधारण महिला नहीं है बल्कि इस वर्ष पद्मश्री जैसे बड़े सम्मान से सम्मानित बिहार की श्रीमती राजकुमारी देवी हैं।आइये संक्षेप में इनके विषय में जानने की कोशिश करते

ये साईकिल से आ रही कोई साधारण महिला नहीं है बल्कि इस वर्ष पद्मश्री जैसे बड़े सम्मान से सम्मानित बिहार की श्रीमती राजकुमारी देवी हैं।
आइये संक्षेप में इनके विषय में जानने की कोशिश करते हैं। इस महान महिला का जीवन बहुत ही प्रेरणादायी है।
बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के सरैया ब्लॉक के ग्राम आनंदपुर की निवासी हैं राजकुमारी देवी,मात्र 15 साल की उम्र में उनका विवाह इस ग्राम में एक किसान के साथ हुआ था जिसको खेती के नाम पर सिर्फ तम्बाकू उगाना आता था।घर का खर्च ठीक से न चलने के कारण परिवार खिन्न रहने लगा,शादी के नौ साल बाद भी राजकुमारी की गोद सूनी थी इस कारण उनको बहुत अत्याचार झेलने पड़े इनको घर से तक निकाल दिया गया। किसी प्रकार दुख झेलते हुए इन्होंने खुद खेती शुरू की और जो भी उपज हुई उससे अचार और मुरब्बे बनाये,मगर कोई इन उत्पाद को बेचने के लिए तैयार नहीं हुआ , तो खुद साइकिल चलानी सीखी और इनको बेचने लगीं।
राजकुमारी को लगा कि और अच्छे ढंग से यदि ये काम किया जाय तो बेहतर मूल्य मिल सकता है। इसके लिए वे पूसा कृषि विश्वविद्यालय पहुंची और खेती तथा फूड प्रोसेसिंग का वाकायदा प्रशिक्षण लिया, फिर खेती में जल्दी फसल देने वाली चीजें उगाईं खासकर पपीता आदि। उनको अचार मुरब्बे आदि से अच्छी इनकम हुई और काम बढा तो उन्होंने अनेक महिलाओं को प्रशिक्षण देकर अपने साथ मिला लिया। फिर उनको सफलता मिलती गयी,सबसे पहले लालू यादव जी ने सरैया मेले में उनको वर्ष 2003 में सम्मानित किया फिर नीतीश जी खुद उनके घर गए और उनके कार्यो का जायजा लेकर वर्ष 2007 में 'किसानश्री' से सम्मानित किया ।ये पुरस्कार पहली बार किसी महिला को मिला था।लोग उनको 'किसान चाची' कहने लगे।
अमिताभ बच्चन के एक शो में भी राजकुमारी आमंत्रित हुईं । शो के बाद उनको एक आटा चक्की 5 लाख रुपये और साड़ियां उपहार स्वरूप मिलीं।

राजकुमारी देवी जी आज स्वयं सहायता समूह के माध्यम से महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही हैं कभी अकेली खेतों में काम करने वाली महिला आज हज़ारों को उनके पैरों पर खड़ा कर रही है,सरकार ऐसे लोगों को ऋण अनुदान देने के लिए पूरी तरह तत्पर है ।बस ईमानदारी और इच्छाशक्ति की जरूरत है।

🙏🙏🙏🙏

कबाड़ी का काम करोगे ....नहीं सब्जी बेचने का काम करोगे ...नहीं फल फ्रूट का काम करोगे .....नहीं मरे हुए जानवर की खाल उतार सकते हो ...नहीं

कबाड़ी का काम करोगे ....नहीं 
सब्जी बेचने का काम करोगे ...नहीं 
फल फ्रूट का काम करोगे .....नहीं 
मरे हुए जानवर की खाल उतार सकते हो ...नहीं 
पंचर लगाना आता है ....नहीं 

सीधी बात 

ट्रक या लॉरी चलाना आता है ? 
नहीं 
बिजली का काम आता है, इलेक्ट्रीशियन हो ?
नहीं 
फ्रिज, टीवी, वाशिंग मशीन आदि बना सकते हो ? 
नहीं
बाइक या कार रिपेयर करना आता है ? 
नहीं 
बाल काटना आता है ? 
नहीं 
फिर आता क्या है ? 
मै BA किया हूँ
वो तो ठीक है, पर आता क्या है ?
कोई उत्तर नहीं 🤔

केवल IA BA, BCom, BSc, MA M.Sc आदि करने से काम नही चलेगा । नौकरी नही मिलेगी । कुछ काम वाले हुनर भी सीखने पड़ेंगे  टेक्निकल कोर्स जरूरी हैं । 

सरकारी नौकरी कम हैं, 
भविष्य में और कम हो जाएंगी, 
इसलिए केवल सरकारी नौकरी के भरोसे न बैठें, 
कुछ हुनर सीखें,

मनोहर जी जल्दी-जल्दी बिस्तर पर छूट गई पेशाब को साफ करने में लगे थे ताकि बहू-बेटा ना देख लें। कल ही तो बहू काजल ने नई चादर बिछाई थी और बेटे रवि को सुनाया था कि अगर पापा जी ने फिर से चादर खराब की, तो वह नहीं साफ करेगी, भले ही घर छोड़ना पड़े। मनोहर जी को किडनी की समस्या के चलते ऐसा कभी-कभी हो जाता है। बेचारे मनोहर जी को अफसोस भी बहुत होता था।

मनोहर जी जल्दी-जल्दी बिस्तर पर छूट गई पेशाब को साफ करने में लगे थे ताकि बहू-बेटा ना देख लें। कल ही तो बहू काजल ने नई चादर बिछाई थी और बेटे रवि को सुनाया था कि अगर पापा जी ने फिर से चादर खराब की, तो वह नहीं साफ करेगी, भले ही घर छोड़ना पड़े। मनोहर जी को किडनी की समस्या के चलते ऐसा कभी-कभी हो जाता है। बेचारे मनोहर जी को अफसोस भी बहुत होता था।

जल्दी से चादर हटाकर मनोहर जी बाथरूम में उसे धोने लगे, यह सोचकर कि बहू आज बेटे के साथ अपने भाई की शादी के कपड़े लेने गई है, तो देर से लौटेगी। भूख भी लग रही थी, पर मन का डर उनके हाथों को तेजी से काम करने को कह रहा था। चादर भीगने के बाद उठाई नहीं जा रही थी, और उनकी सांसें फूलने लगीं। तभी उन्होंने सामने अचानक बेटे-बहू को खड़ा पाया। वे बस इतना बोले, "बहू, अब नहीं होगा... मैंने साफ कर दी है।"

बेटे रवि ने अपने पिता को सहारा देकर कुर्सी पर बैठाया। बहू ने नाराजगी से कहा, "देख लो, फिर तुम्हारे पिता ने बिस्तर खराब कर दिया। कितनी बदबू आ रही है। इन्हें अस्पताल में भर्ती करवाओ।" रवि ने बहू को शांत करते हुए कहा, "तुम अपने मायके जा सकती हो। उस बाप को कैसे छोड़ सकता हूँ, जिसने मेरी पैंट तक साफ की थी जब मैं कच्छे में पोटी कर देता था। उस बाप का पेशाब नहीं साफ होगा, जिसकी यूनिफॉर्म पर मैंने उस दिन टॉयलेट कर दी थी जब पिता जी अपने सम्मान समारोह में जा रहे थे।"

रवि ने अपने पिता को संभालते हुए कहा, "चलिये पापा, आप कितने गीले हो गए हैं। ठंड लग जाएगी। आपके लिए चाय बनाता हूँ।" बेटे ने दीवान से नई चादर निकालकर बिस्तर पर बिछाई, मनोहर जी को बैठाया, उनके कपड़े बदले और अपने हाथों से चाय पिलाने लगा। मनोहर जी के कंपकंपाते हाथ बेटे के सिर पर आशीर्वाद देने के लिए आ गए। उनकी आँखों से आँसू बह निकले, जिन्हें वे धोती के कोने से पोंछते जा रहे थे। उन्होंने अपनी पत्नी की तस्वीर को देख मन ही मन कहा, "देख ले विमला, तू कहती थी मैं चला जाऊंगा तो कौन ख्याल रखेगा मेरा। हमारा रवि देख कैसे तेरे बुढ़ऊँ की सेवा कर रहा है।"

दरवाजे पर खड़ी बहू काजल भी पश्चाताप के आँसू बहा रही थी। इस घटना ने उसे अहसास दिलाया कि परिवार का हर सदस्य, चाहे कितना भी कमजोर क्यों ना हो, अपने स्नेह और सम्मान के हकदार होते हैं।


एक कोई विदेश की वामपंथी संस्था है टेस्ट एटलस, यह गाहे बगाहे विश्व के स्वादिष्ट और बेस्वाद व्यंजनों की सूची निकालती रहती है। इसने भारत के सबसे बेस्वाद व्यंजन की सूची निकाली तो उनमें एक नाम मालपुए का था। दरअसल ये लोग मालपुए को बेस्वाद बताकर न केवल भारतीय मिठाइयों के प्रति हेय भाव दिखा कर उसके मार्केट को प्रभावित करना चाहते बल्कि सम्पूर्ण भारतीय व्यंजनों का उपहास किया करते हैं।मालपुआ की परंपरा ऋग्वैदिक कालीन युग से शुरू होती है।प्राचीन समय में इस मिठाई को जौ से बनाया जाता था। जौ को दूध में गूंथने के बाद उसे गाय के घी में तलकर फिर शहद में डुबोकर इसे खाया जाता था। इसे अपूप या पुपालिका के नाम से भी जाना जाता है। बाद में इसे गेहूं के आटे से बना कर दूध, मक्खन, चीनी, इलायची जैसी चीजों के साथ मिलाकर बनाया जाने लगा।चाशनी में डूबे मालपुए और रबड़ी में भीगे मालपुए के दोनो के स्वाद स्वार्गिक होते हैं। कैंडी खाने वाले इस स्वाद को क्या ही जान सकते हैं। वैसे कैंडी शब्द खांड से ही बना प्रतीत होता है। पुष्पेच पंत जैसे लोग मालपुए को मुगलिया व्यंजन बताते हैं जैसे मुगल रेगिस्तान से अपने गधों पर दूध घी गन्ना लाद कर ले आए हों।भारत स्वाद का देश है, हो सके तो आप मानसोल्लास ग्रंथ पढ़िए, आपको पता चलेगा कि कामधेनु को छोड़कर हम बकरी पाल लिए हैं। धेनु से याद आया, टेस्ट एटलस वालों ने गाय के मांस को सबसे स्वादिष्ट बताया है।मालपुआ की एक प्रजाति अनरसा है, आजकल पूर्वांचल के बाजारों में गुड़ और चीनी के बने अनरसे खूब मिलते हैं।नीचे चित्र में रबड़ी मालपुआ नत्थी कर रहा हूं, घर में भी बना सकते हैं, हलवाई के यहां से भी ला सकते हैं। मालपुआ खाने से सिरदर्द और टेंशन दोनों कम होता है।

एक कोई विदेश की वामपंथी संस्था है टेस्ट एटलस, यह गाहे बगाहे विश्व के स्वादिष्ट और बेस्वाद व्यंजनों की सूची निकालती रहती है। इसने भारत के सबसे बेस्वाद व्यंजन की सूची निकाली तो उनमें एक नाम मालपुए का था। 
दरअसल ये लोग मालपुए को बेस्वाद बताकर न केवल भारतीय मिठाइयों के प्रति हेय भाव दिखा कर उसके मार्केट को प्रभावित करना चाहते बल्कि सम्पूर्ण भारतीय व्यंजनों का उपहास किया करते हैं।
मालपुआ की परंपरा ऋग्वैदिक कालीन युग से शुरू होती है।प्राचीन समय में  इस मिठाई को जौ से बनाया जाता था। जौ को दूध में गूंथने के बाद उसे गाय के घी में तलकर फिर शहद में डुबोकर इसे खाया जाता था। इसे अपूप या पुपालिका के नाम से भी जाना जाता है। बाद में इसे  गेहूं के आटे से बना कर दूध, मक्खन, चीनी, इलायची जैसी चीजों के साथ मिलाकर बनाया जाने लगा।
चाशनी में डूबे मालपुए और रबड़ी में भीगे मालपुए के दोनो के स्वाद स्वार्गिक होते हैं। कैंडी खाने वाले इस स्वाद को क्या ही जान सकते हैं। वैसे कैंडी शब्द खांड से ही बना प्रतीत होता है। पुष्पेच पंत जैसे लोग मालपुए को मुगलिया व्यंजन बताते हैं जैसे मुगल रेगिस्तान से अपने गधों पर दूध घी गन्ना लाद कर ले आए हों।
भारत स्वाद का देश है,  हो सके तो आप मानसोल्लास ग्रंथ पढ़िए, आपको पता चलेगा कि कामधेनु को छोड़कर हम बकरी पाल लिए हैं। धेनु से याद आया, टेस्ट एटलस वालों ने गाय के मांस को सबसे स्वादिष्ट बताया है।
मालपुआ की एक प्रजाति अनरसा है, आजकल पूर्वांचल के बाजारों में गुड़ और चीनी के बने अनरसे खूब मिलते हैं।
नीचे चित्र में रबड़ी मालपुआ नत्थी कर रहा हूं, घर में भी बना सकते हैं, हलवाई के यहां से भी ला सकते हैं। मालपुआ खाने से सिरदर्द और टेंशन दोनों कम होता है।

हमारे जमाने में साइकिल तीन चरणों में सीखी जाती थी, पहला चरण - कैंची दूसरा चरण - डंडा तीसरा चरण - गद्दी ...

हमारे जमाने में साइकिल तीन चरणों में सीखी जाती थी, 
पहला चरण   -   कैंची 
दूसरा चरण    -   डंडा 
तीसरा चरण   -   गद्दी ...
*तब साइकिल की ऊंचाई 24 इंच हुआ करती थी जो खड़े होने पर हमारे कंधे के बराबर आती थी ऐसी साइकिल से गद्दी चलाना मुनासिब नहीं होता था।*
*"कैंची" वो कला होती थी जहां हम साइकिल के फ़्रेम में बने त्रिकोण के बीच घुस कर दोनो पैरों को दोनो पैडल पर रख कर चलाते थे*।
और जब हम ऐसे चलाते थे तो अपना सीना तान कर टेढ़ा होकर हैंडिल के पीछे से चेहरा बाहर निकाल लेते थे, और *"क्लींङ क्लींङ" करके घंटी इसलिए बजाते थे ताकी लोग बाग़ देख सकें की लड़का साईकिल दौड़ा रहा है* ।
*आज की पीढ़ी इस "एडवेंचर" से महरूम है उन्हे नही पता की आठ दस साल की उमर में 24 इंच की साइकिल चलाना "जहाज" उड़ाने जैसा होता था*।
हमने ना जाने कितने दफे अपने *घुटने और मुंह तोड़वाए है* और गज़ब की बात ये है कि *तब दर्द भी नही होता था,* गिरने के बाद चारो तरफ देख कर चुपचाप खड़े हो जाते थे अपना हाफ कच्छा पोंछते हुए।
अब तकनीकी ने बहुत तरक्क़ी कर ली है पांच साल के होते ही बच्चे साइकिल चलाने लगते हैं वो भी बिना गिरे। दो दो फिट की साइकिल आ गयी है, और *अमीरों के बच्चे तो अब सीधे गाड़ी चलाते हैं छोटी छोटी बाइक उपलब्ध हैं बाज़ार में* ।
मगर आज के बच्चे कभी नहीं समझ पाएंगे कि उस छोटी सी उम्र में बड़ी साइकिल पर संतुलन बनाना जीवन की पहली सीख होती थी!  *"जिम्मेदारियों" की पहली कड़ी होती थी जहां आपको यह जिम्मेदारी दे दी जाती थी कि अब आप गेहूं पिसाने लायक हो गये हैं* ।
*इधर से चक्की तक साइकिल ढुगराते हुए जाइए और उधर से कैंची चलाते हुए घर वापस आइए* !
और यकीन मानिए इस जिम्मेदारी को निभाने में खुशियां भी बड़ी गजब की होती थी।
और ये भी सच है की *हमारे बाद "कैंची" प्रथा विलुप्त हो गयी* ।
हम लोग  की दुनिया की आखिरी पीढ़ी हैं जिसने साइकिल चलाना तीन चरणों में सीखा !
*पहला चरण कैंची*
*दूसरा चरण डंडा*
*तीसरा चरण गद्दी।*
● *हम वो आखरी पीढ़ी  हैं*, जिन्होंने कई-कई बार मिटटी के घरों में बैठ कर परियों और राजाओं की कहानियां सुनीं, जमीन पर बैठ कर खाना खाया है, प्लेट में चाय पी है।
● *हम वो आखरी लोग हैं*, जिन्होंने बचपन में मोहल्ले के मैदानों में अपने दोस्तों के साथ पम्परागत खेल, गिल्ली-डंडा, छुपा-छिपी, खो-खो, कबड्डी, कंचे जैसे खेल खेले हैं l

एक बहुत छोटी सी बात है पर हमने उसे विस्मृत कर दिया हमारी भोजन संस्कृति, इस भोजन संस्कृति में बैठकर खाना और उस भोजन को "दोने पत्तल" पर परोसने का बड़ा महत्व था कोई भी मांगलिक कार्य हो उस समय भोजन एक पंक्ति में बैठकर खाया जाता था और वो भोजन पत्तल पर परोसा जाता था जो विभिन्न प्रकार की वनस्पति के पत्तो से निर्मित होती थी.क्या हमने कभी जानने की कोशिश की कि ये

एक बहुत छोटी सी बात है पर हमने उसे विस्मृत कर दिया हमारी भोजन संस्कृति, इस भोजन संस्कृति में बैठकर खाना और उस भोजन को "दोने पत्तल" पर परोसने का बड़ा महत्व था कोई भी मांगलिक कार्य हो उस समय भोजन एक पंक्ति में बैठकर खाया जाता था और वो भोजन पत्तल पर परोसा जाता था जो विभिन्न प्रकार की वनस्पति के पत्तो से निर्मित होती थी.

क्या हमने कभी जानने की कोशिश की कि ये भोजन पत्तल पर परोसकर ही क्यो खाया जाता था?नही क्योकि हम उस महत्व को जानते तो देश मे कभी ये "बुफे"जैसी खड़े रहकर भोजन करने की संस्कृति आ ही नही पाती.
जैसा कि हम जानते है पत्तले अनेक प्रकार के पेड़ो के पत्तों से बनाई जा सकती है इसलिए अलग-अलग पत्तों से बनी पत्तलों में गुण भी अलग-अलग होते है| तो आइए जानते है कि कौन से पत्तों से बनी पत्तल में भोजन करने से क्या फायदा होता है? 

लकवा से पीड़ित व्यक्ति को अमलतास के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना फायदेमंद होता है| 
जिन लोगों को जोड़ो के दर्द की समस्या है ,उन्हें करंज के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना चाहिए| 
जिनकी मानसिक स्थिति सही नहीं होती है ,उन्हें पीपल के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना चाहिए| 
पलाश के पत्तों से बनी पत्तल में भोजन करने से खून साफ होता है और बवासीर के रोग में भी फायदा मिलता है| 
केले के पत्ते पर भोजन करना तो सबसे शुभ माना जाता है ,इसमें बहुत से ऐसे तत्व होते है जो हमें अनेक बीमारियों से भी सुरक्षित रखते है| 
पत्तल में भोजन करने से पर्यावरण भी प्रदूषित नहीं होता है क्योंकि पत्तले आसानी से नष्ट हो जाती है| 
पत्तलों के नष्ट होने के बाद जो खाद बनती है वो खेती के लिए बहुत लाभदायक होती है| 
पत्तले प्राकतिक रूप से स्वच्छ होती है इसलिए इस पर भोजन करने से हमारे शरीर को किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती है| 
अगर हम पत्तलों का अधिक से अधिक उपयोग करेंगे तो गांव के लोगों को रोजगार भी अधिक मिलेगा क्योंकि पेड़ सबसे ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रो में ही पाये जाते है| 

अगर पत्तलों की मांग बढ़ेगी तो लोग पेड़ भी ज्यादा लगायेंगे जिससे प्रदूषण कम होगा| 
डिस्पोजल के कारण जो हमारी मिट्टी ,नदियों ,तालाबों में प्रदूषण फैल रहा है ,पत्तल के अधिक उपयोग से वह कम हो जायेगा| 

जो मासूम जानवर इन प्लास्टिक को खाने से बीमार हो जाते है या फिर मर जाते है वे भी सुरक्षित हो जायेंगे ,क्योंकि अगर कोई जानवर पत्तलों को खा भी लेता है तो इससे उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा| 

सबसे बड़ी बात पत्तले ,डिस्पोजल से बहुत सस्ती भी होती है|

ये बदलाव आप और हम ही ला सकते है अपनी संस्कृति को अपनाने से हम छोटे नही हो जाएंगे बल्कि हमे इस बात का गर्व होना चाहिए कि हम हमारी संस्कृति का विश्व मे कोई सानी नही है इसलिए 
स्वदेशी अपनाएं, देश बचाएं और साथ में  संस्कृति  भी

हमारा विनाश कब व कैसे शुरू हुआ था? 1. हमारा विनाश उस समय से शुरू हुआ था, जब हरित क्रांति के नाम पर देश में रासायनिक खेती की शुरूआत हुई और हमारा पौष्टिक वर्धक, शुद्ध भोजन विष युक्त कर दिया गया।

हमारा विनाश कब व कैसे शुरू हुआ था? 
1. हमारा विनाश उस समय से शुरू हुआ था, जब हरित क्रांति के नाम पर देश में रासायनिक खेती की शुरूआत हुई और हमारा पौष्टिक वर्धक, शुद्ध भोजन विष युक्त कर दिया गया।

2. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था, जिस दिन देश में जर्सी गाय लायी गई और भारतीय स्वदेशी गाय का अमृत रूपी दूध छोड़कर जर्सी गाय का विषैला दूध पीना शुरु किया था। 

3. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था, जिस दिन भारतीयों ने दूध, दही, मक्खन, घी आदि छोड़कर शराब पीना शुरू किया था।

4. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था, जिस दिन देशवासियों ने गन्ने का रस छोड़कर पेप्सी, कोका कोला पीना शुरु किया था, जिसमें 12 तरह के कैमिकल होते हैं और जो कैंसर, टीबी, हृदय घात का कारण बनते हैं। 

5. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था, जिस दिन देशवासियों ने शुद्ध देशी तेल खाना छोड़ दिया था और रिफाइंड आयल खाना शुरू किया था, जो रिफाइंड ऑयल हृदयघात आदि का कारण बन रहा है।

6. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था, जिस दिन देश के युवाओं ने नशा शुरू किया था। बीडी, सिगरेट, गुटखा, गांजा, अफीम, आदि शुरू किया था, जिससे कैंसर बढ रहा है।

7. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था, जिस दिन देश में हजारों नकली दवाओं का व्यापार शुरु हुआ और नकली दवाओं से लोग मर रहे हैं।

8. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था, जिस दिन देशवासियों ने अपने स्वदेशी भोजन छोड़कर पीजा, बर्गर, जंक फूड खाना शुरू किया था, जो अनेक बीमारियों का कारण बन रहा है।

9. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था, जिस दिन लोगों ने अनुशासित और स्वस्थ दिनचर्या को छोड़कर मनमानी दिनचर्या शुरू की थी।

10. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था, जिस दिन लोगों ने घरों में एलुमिनियम के बर्तन व घर में फ्रिज लाया था। 

11. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था, जिस दिन भारतीय जीवन शैली को छोड़कर विदेशी जीवन शैली शुरू की थी।

12 .हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था, जिस दिन लोगों ने स्वस्थ रहने का विज्ञान छोड दिया था और अपने शरीर के स्वास्थ्य सिद्धांतों के विपरीत कार्य करना शुरू किया था ।

13. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था, जिस दिन देश का अधिकतर युवा / युवतियां व्यभिचारी बनकर व्यभिचार करना, गर्भ निरोधक गोलियां खाना, लाखों युवतियां हर साल गर्भाशय कैंसर से मरती हैं।

14. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था, जिस दिन लोगों ने अपने बच्चों को टीके लगवाना शुरू किया था और यह विचार कभी भी नहीं किया था कि टीकों का बच्चों के शरीर पर भविष्य में क्या प्रभाव पडेगा? 

15. इस शरीर की कुछ सीमा है, कुछ मर्यादा है, कुछ स्वस्थ सिद्धांत हैं, लेकिन मनमाने आचरण के कारण शरीर की बर्बादी की है।

नोट :- हमारे विनाश के अनेक कारण हैं। आज लोगों को सिर्फ रोना ही दिखाई दे रहा है, उन्हें यह भी देखना चाहिए कि लोग कैंसर, टीबी, हृदय घात, शुगर, किडनी फेल, BP High, BP Low, अस्थमा आदि गंभीर बीमारियों से मर रहे हैं।
#मारवाङी #राजसथानी #काचर 

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Nirmal Kumar

भूख नहीं थी कल रात, कुछ भी खाने का मन नहीं था। लेकिन जब पराँठा बना तो पाँच पराँठे खा गया। और विद्वान लोग कहते हैं पराँठा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

भूख नहीं थी कल रात, कुछ भी खाने का मन नहीं था। लेकिन जब पराँठा बना तो पाँच पराँठे खा गया। 

और विद्वान लोग कहते हैं पराँठा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। 

ना जाने क्यों मुझे बचपन से ही वही सब चीजें पसंद हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है... जैसे कि पराँठा, मसालेदार तेज मिर्च वाली दाल तड़का, मसालेदार सब्जियाँ, चाय, कॉफी, चाउमीन, ब्रेड पकौड़ा, प्याज की सब्ज़ी, टमाटर की चटनी, आलू-बैंगन का भर्ता....

प्रायोजित महामारी काल के बाद से ही स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोगों की ऐसी बाढ़ आयी है, कि घबराहट हो रही है कि कहीं इस बाढ़ में पूरी मानव जाति ही न बह जाये और मेरे जैसे कुछ सरफिरे ही बचे रह जाएँ।

हर जगह यही बताया जा रहा है ये मत खाओ, वो मत खाओ, ये मत पीयो, वो मत पीयो। प्याज, लहसुन, मसूर की दाल, मशरूम, टमाटर, बैंगन तो पहले ही सात्विक लोगों के परहेज लिस्ट में सबसे ऊपर थी। और अभी थोड़ी देर पहले कहीं देखा कि विद्वान व्यक्ति बता रहा था कि चाय पीने से हड्डियाँ गलती हैं इसलिए चाय नहीं पीना चाहिए।

यदि चाय पीने से हड्डियाँ गलती हैं, तो चीन, जापान, आसाम के नागरिक तो हजारों वर्ष पहले ही सड़ गल गए होते ?

क्योंकि चाय पीने का चलन तो चीन में 4 हज़ार वर्ष पुराना है। 

दुनिया भर का परहेज बताया जा रहा है, लेकिन यह नहीं हो रहा कि प्रिजरवेटिव कैमिकल्स को बैन करवा दें। इन विद्वानों को यह नहीं पता कि ना तो चाय हानिकारक है, ना कॉफी, ना तेल, ना घी, ना कोई अन्य खाद्य पदार्थ। हानिकारक है तो इन्हें पैक करने में प्रयोग किया जाने वाला प्रिजर्वेटिव्स और वे कैमिकल्स जो इन्हें तैयार करने और उगाने में प्रयोग किए जाते हैं, वे पेस्टिसाइट्स (कीटनाशक) जो किसानी में प्रयोग किए जाते हैं।

और हानिकारक हैं वे एलोपैथिक दवाएं, जो पोटली भर-भर कर खाते हैं लोग प्रायोजित बीमारियों से बचने के लिए। हानिकारक हैं वे सुरक्षाकवच जो पूरे विश्व को बंधक बनाकर चेपा जाता है जबर्दस्ती चन्दा और कमीशन के लालच में सरकारों के द्वारा।

~ #विशुद्ध_चैतन्य ✍️

लाइफ पार्टनर से सुख नहीं मिलता तो सेक्स पार्टनर बना लेती औरते लेकिन वो सेक्स पार्टनर उनका लाइफ पार्टनर नहीं बन सकता ....आज के युवाओं को मैं एक अहम बात बताना चाहता हूं।

लाइफ पार्टनर से सुख नहीं मिलता तो सेक्स पार्टनर बना लेती औरते लेकिन वो सेक्स पार्टनर उनका लाइफ पार्टनर नहीं बन सकता ....
आज के युवाओं को मैं एक अहम बात बताना चाहता हूं।

 हमारे समाज में अक्सर जीवन साथी ही सेक्स पार्टनर होते हैं, लेकिन इन दिनों मैं देख रहा हूं कि बहुत सी महिलाएं, चाहे वे एकल हों, तलाकशुदा हों या फिर शादीशुदा, ऐसे पुरुषों के साथ इन्वॉल्व हो रही हैं जो खुद शादीशुदा हैं और जिनका अपना परिवार है।

इन संबंधों में ये महिलाएं शारीरिक और भावनात्मक रूप से जुड़ जाती हैं। उन्हें लगता है कि उनके बीच का रिश्ता एक गहरा रहस्य है, जिसे कोई नहीं जानता। लेकिन यहीं पर वे बड़ी गलती कर बैठती हैं।

सोचिए, जो पुरुष अपनी बीवी और बच्चों को धोखे में रखकर आपके साथ समय बिता रहा है, वह आपका कभी नहीं हो सकता। आप नहीं जानतीं कि वह कहां-कहां, किसके-किसके बीच बैठकर आपके चरित्र की धज्जियां उड़ा रहा है और बेशर्मी से आपको सिर्फ़ एक ट्रॉफी की तरह देख रहा है।

वह खुद को इतना कूल समझता है कि बीवी होते हुए भी दूसरी महिला उसे चाहती है। आप उस पर भरोसा कर अपनी भावनाएं और शरीर लुटा रही हैं, और वह लुटेरा बनकर आपके मन और शरीर दोनों से खेल रहा है।

साल, दो साल, दस साल बाद भी वह अपने परिवार के साथ ही रहेगा। सारे गुनाहों के बाद भी उसकी मां, बीवी, बच्चे सब उसे अपना लेंगे और दोषी ठहराई जाएगी सिर्फ़ आप। क्योंकि ऐसे मामलों में समाज की नजर में पुरुष बेचार होता है, जिसे महिला ने अपने प्रेम जाल में फांस लिया।

क्या आप चाहती हैं कि एक दिन आपको यह एहसास हो कि आप सिर्फ़ एक खिलौना थीं? नहीं, बिल्कुल नहीं। आप एक मजबूत और सम्मानित जीवन की हकदार हैं। इसलिए खुद को संभालो।

याद रखें, एक आग की लपट से बचने के लिए दूसरी आग के कुंए में मत कूदो।

यह ध्यान रखें:
जीवन साथी और सेक्स पार्टनर के बीच अंतर समझें।
अपनी भावनाओं और शरीर का सम्मान करें।
धोखेबाज लोगों से बचें, जो आपके भरोसे और प्रेम का गलत फायदा उठाते हैं।
समझदारी से फैसले लें और अपने आप को किसी भी प्रकार के नुकसान से बचाएं।
आपकी खुशियां और सम्मान आपके अपने हाथ में हैं। खुद पर विश्वास करें, सही फैसले लें, और एक बेहतर, सुखद भविष्य की ओर कदम बढ़ाएं। आपका जीवन बहुमूल्य है, इसे सच्चे और ईमानदार रिश्तों से भरें।

तो उठिए, जागिए, और अपनी जिंदगी को संवारिए। आप इससे कहीं बेहतर की हकदार हैं। 🌟