अब जैसे कि हम कहेंगे कि आज बीमारियों का इलाज
हो गया है। पुराने लोगों ने इन बीमारियों के इलाज
क्यों न बता दिये। लेकिन आप हैरान होंगे जानकर
इतनी जड़ी बूटियों का हिसाब है और
इतना हैरानी का है कि जिनके पास कोई प्रयोग
शालाएं न थे वे कैसे जाने सके कि यह जड़ी-
बूटी फलां बीमारी पर इस मात्रा में काम करेंगी।
तो लुकमान के बाबत कहानी है , क्योंकि कोई
प्रयोगशाला तो थी नहीं, पर यह काम केवल चौथे
शरीर से हो सकता था।
लुकमान के बाबत कहानी है कि वह एक-एक पौधे के
पास जाकर पुछता था कि बता किस-किस बीमार में
तू काम आ सकता है। अब यह कहानी बिलकुल
फिजूल हो गयी आज….कोई पौधे से…क्या मतलब
इस बात का। लेकिन अभी पचास साल पहले तक हम
नहीं मानते थे कि पौधे में प्राण है—इधर पचास
साल में विज्ञान ने स्वीकार किया—पौधे में प्राण
है। इधर तीस साल पहले तक हम नहीं मानते थे
कि पौधा श्वास लेता है। इधर तीस साल से हमने
स्वीकार किया है कि पौधा श्वास लेता है।
अभी पिछले पंद्रह साल तक हम नहीं मानते थे
कि पौधा फील(अनुभव) करता है। अभी पंद्रह साल
में हमने स्वीकार किया है
कि पौधा अनुभूति भी करता है। और जब आप क्रोध
से पौधे के पास जाते है, तब पौधे की मनोदशा बदल
जाती है। और जब आप प्रेम से पौधे के पास जाते है
तो वह प्रेम पूर्ण मनोदशा को महसूस करता है।
कोई आश्चर्य नहीं की आने वाले पचास सालों में,
हम मान ले कि पौधे से बोला भी जा सकता है। यह
तो क्रमिक विकास है। और लुकमान सिद्ध
हो सही कि उसने पूछा हो पौधों से कि किस काम
आते हो। ये मुझे बताओ। लेकिन यह ऐसी बात
नहीं है। कि हम सामने बोल सकें, यह चौथे शरीर पर
संभव है। यह चौथे शरीर पर जाकर पौधे
को आत्मसात किया जा सकता है। उसी से
पूछा जा सकता है।
और मैं भी मानता हूं क्योंकि कोई
लेबोरेटरी (प्रयोगशाला) इतनी बड़ी नहीं मालूम
पड़ती कि लुकमान लाख-लाख जड़ी-
बूटियों का पता बता सके, यह इसका कोई उपाय
नही; क्योंकि एक-एक जड़ी-बूटी की खोज करने में
एक-एक लुकमान की जिंदगी लग जायेगी। वह एक
लाख, करोड़ जड़ी-बूटियों के बाबत कह रहा है
कि यह इस-इस काम में आयेगी अरे अब विज्ञान
उसको कहता है कि हां, वह इस काम में आती है। वे
आ रही है इसी काम में।
यह जो सारी की सारी खोज बीन अतीत की है।
वह सारी की सारी खोजबीन चौथे शरीर में
उपलब्ध लोगों की ही है। और उन्होंने बहुत पहले
खोजी थी, जिनका हमें कोई ख्याल नहीं है।
अब जैसे की हम हजारों बीमारियों का इलाज कर
रहे है। जो बिलकुल अवैज्ञानिक है। चौथे शरीर
वाला आदमी कहेगा; ये तो बीमारियां ही नहीं है।
इनका तुम इलाज क्यों कर रहे हो। लेकिन अब
वैज्ञानिक समझ रहे है। अभी एलोपैथी नये प्रयोग
कर रही है। अभी अमरीका के कुछ हास्पिटलस
(चिकित्सालय) में उन्होंने…..दस मरीज है एक
ही बीमारी के, तो पाँच मरीज को वे
पानी का इंजेक्शन दे रहे है, पाँच को दवा दे रहे है।
बड़ी हैरानी की बात है कि दवा लेने वाले
भी उसी अनुपात में ठीक होते है। और पानी वाले
भी उसी अनुपात से ठीक होते है। इसका अर्थ यह
हुआ कि पानी से ठीक होनेवाले
रोगियों को वास्तव में कोई बिमारी नहीं है।
बल्कि उन्हें शायद बीमार होने का भ्रम था।
अब लुकमान ने जो पौधों की बाबत बताया है आज
भी उन सब
पौधों को पूरी दुनिया की प्रयोगशालाओं में टेस्ट
करे तो हजार साल में भी वो इतने प्रणाम नहीं दे
सकती। उस जमाने कैसे किया होगा ये सब काम
लुकमान ने। तब
तो इतनी प्रयोगशाला भी नहीं थी। ये सब उन्होंने
चौथे शरीर से जाना था। आज नहीं कल विज्ञान
वहां जा कर कहेगी की लुकमान सही था।
क्योंकि प्रकृति की तरह विज्ञान भी क्रमिक
विकास करता है। और ध्यान जंप है। एक शरीर से
दूसरे शरीर में।
ओशो
जिन खोजा तीन पाइयां
प्रश्नोत्तर चर्चाएं, बंबई,
प्रवचन—8
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