Friday, 14 July 2023

स्त्री ,होती है एक क़िताब की तरह, जिसे देखते हैं सब , अपनी-अपनी, ज़रुरतों के हिसाब से....

स्त्री ,
होती है एक क़िताब की तरह,
   जिसे देखते हैं सब ,
       अपनी-अपनी,
      ज़रुरतों के हिसाब से....
कोई सोचता है उसे,
   एक घटिया और सस्ते,
       उपन्यास की तरह...

तो कोई घूरता है,
   उत्सुक-सा, 
     एक हसीन रंगीन ,
        चित्रकथा समझकर...

कुछ पलटते हैं, 
   इसके रंगीन पन्ने ,
     गुज़ारने के लिए,
     अपना खाली वक़्त...

तो कुछ रख देते हैं,
     सजाकर,
      घर की लाइब्रेरी में,
        किसी बड़े लेखक की 
         कृति की तरह...
           बनाकर केवल एक,
              स्टेटस सिम्बल ....

कुछ ऐसे भी है ,
   जो इसे रद्दी समझकर ,
     पटक देते हैं,
        घर के किसी कोने में.....

तो कुछ बहुत उदार होकर, 
   पूजते हैं मन्दिर में,
     किसी आले में रखकर,
      किसी धर्म ग्रन्थ की तरह...

स्त्री होती है,
  एक क़िताब की तरह,
     जिसे, 
       पृष्ठ दर पृष्ठ 
         कोई पढ़ता ही नही....
            समझता नही,
   आवरण से लेकर
      अंतिम पृष्ठ तक
        सिर्फ़ देखता है,
            टटोलता है....

और वो रह जाती है
    अनबांची...
     अनअभिव्यक्त,
         अभिशप्त सी...
  ब्याहता होकर भी
      कुआंरी सी......

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