Saturday, 21 September 2024

94 साल की मधुकान्ता भट्ट इस उम्र में भी रोज़ अखबार पढ़ती हैं, क्रिकेट मैच देखती हैं, पुराने गीत, भजन गाती हैं और सिलाई-बुनाई का काम भी करती हैं। उन्हें देखकर कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता कि थोड़े समय पहले वह गिर गईं थीं और तब से ठीक से चल भी नहीं पा रही हैं। बावजूद इसके वह अपनी हॉबी के ज़रिए पर्यावरण बचाने में मदद कर रही हैं। वह पिछले पांच सालों से प्लास्टिक मुक्त भारत अभियान में मदद कर रही हैं। उन्होंने बेकार कपड़ों की कतरन से 35000 थैलियां बनाईं हैं और लोगों को फ्री में बाँटी

94 साल की मधुकान्ता भट्ट इस उम्र में भी रोज़ अखबार पढ़ती हैं, क्रिकेट मैच देखती हैं, पुराने गीत, भजन गाती हैं और सिलाई-बुनाई का काम भी करती हैं। उन्हें देखकर कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता कि थोड़े समय पहले वह गिर गईं थीं और तब से ठीक से चल भी नहीं पा रही हैं। बावजूद इसके वह अपनी हॉबी के ज़रिए पर्यावरण बचाने में मदद कर रही हैं। वह पिछले पांच सालों से प्लास्टिक मुक्त भारत अभियान में मदद कर रही हैं। उन्होंने बेकार कपड़ों की कतरन से 35000 थैलियां बनाईं हैं और लोगों को फ्री में बाँटी हैं।

हैदराबाद की रहने वाली मधुकान्ता को कभी भी खाली बैठना पसंद नहीं था। उन्होंने सिलाई का कोई स्पेशल कोर्स नहीं किया। वह सारी चीजें अपने खुद के दिमाग से ही बनाती हैं। हाँ, उन्होंने मशीन रिपेयरिंग का एक छोटा सा कोर्स किया था ताकि अगर कभी मशीन ख़राब हो जाएं तो वह इसे झट से ठीक कर लें।

पहले वह घर के बेकार कपड़ों से कुछ न कुछ काम की चीजें बनाया करती थीं। लेकिन जब उन्होंने देखा कि लोग कपड़ें की थैलियों की जगह हर एक काम में प्लास्टिक की थैली का इस्तेमाल कर रहे हैं। तब उन्होंने विशेष रूप से कपड़ों की थैलियां सिलना शुरू किया। धीरे-धीरे उन्होंने लोगों को फ्री में थैलियां बनाकर बाँटना शुरू किया।

इस काम के लिए उनके एक व्यापारी मित्र, उन्हें चादरों के टुकड़े और दर्जी के पास से कपड़ों की कतरन दिया करते हैं। इस काम में उनके बेटे नरेश उनका खूब साथ देते हैं। इस उम्र में भी उन्हें सिलाई मशीन पर बैठा देखकर कई लोग आश्चर्य करते हैं। लेकिन मधुकान्ता सभी को एक ही सन्देश देती हैं कि वह कभी रिटायर नहीं होंगी और हमेशा ऐसे ही काम करती रहेंगी।

आशा है, सुपर दादी का यह जज़्बा आपको भी जरूर पसंद आया होगा।

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