Thursday, 28 July 2022

एन्टी भू माफिया टास्क फोर्स:जंगल में मोर नाचा, किसने देखा**तहसील प्रशासन ने मुंगराबादशाहपुर नगर ही बेच दिया*

*एन्टी भू माफिया टास्क फोर्स:जंगल में मोर नाचा, किसने देखा*

*तहसील प्रशासन ने मुंगराबादशाहपुर नगर ही बेच दिया*

पूरे देश से जमींदारी खत्म हो गयी #खेवट #जमींदार #नम्बरदार  #खेवटदार #इस्तमरारी #जिम्मन #मजरुआ जैसे जमींदारी के जमाने के शब्द भी इतिहास के पन्ने बन गये । किन्तु .................................... उ0प्र0जिला जौनपुर के नगरपालिका परिषद मुँगराबादशाहपुर की नगरीय सीमा के अन्दर उ0प्र0सरकार के उ0प्र0 नागर क्षेत्र जमींदारी विनाश भूमि ब्यवस्था अधिनियम1956 पारित करने और उसके सन्दर्भ में 20 मई 1972 को स्पष्ट शासनादेश जारी करने बावजूद भी नगर क्षेत्र में बादशाहपुर,कमालपुर,सरायरुस्त, पकड़ी,मुगरडीह और धौरहरा मौजों में कथित जमींदारी आज भी कायम है ।
आपको यह जानकर घोर आश्चर्य होगा कि आज की तारीख में भी नगर मुंगराबादशाहपुर मौजा बादशाहपुर की 249.17 एकड़ भूमि जिस पर हजारों परिवारों की सघन बस्ती है ,अनेक बड़े - व्यसायिक प्रतिष्ठान एवं प्राथमिक विद्यालय है । कथित नम्बरदार/ जमींदार इकबालयार खाँ पुत्र जहूरयार खाँ मोहल्ला सिपाह ने दावा करते हुए कई इलाके की जमीनों की खरीद - बिक्री और मालिकाना के नामान्तरण पर रोक लगवा रखा हैं । मुंगराबादशाहपुर नगर की आधी आबादी की नींद हराम करने वाली इस गैरकानूनी साजिश के शिकार सैकडों नागरिक बने तथा मछलीशहर तहसील प्रशासन और कथित नम्बरदार/ जमींदार की अवैध कमाई का जरिया बना हुआ है जमींदारी। 
मछलीशहर तहसील में कदम- कदम पर भर्ष्टाचार है। न्याय तो किसी मिलती ही नही न ही शिकायतें पर कोई सुनवाई होती हैं। मछलीशहर तहसील में भूमाफियाओं और जालसाजों का ही राज चलता है। एन्टी भूमाफिया टास्क फोर्स केवल सफेद हाथी है। आधार वर्ष 1359 फसली वर्ष और वर्तमान फसली वर्ष के अभिलेखों में बहुत अंतर है। 1359 आधार वर्ष राजस्व अभिलेखों से मिलान कराना पर अरबों रुपए के भूमि फर्जीवाड़ा आ रहा है। 1378 फसली वर्ष के अभिलेखों में जालसाजों और कथित जमींदारों ने मछलीशहर तहसील प्रशासन से सांठगांठ कर अपना नाम दर्ज करा लिया था। जिसे जालसाजों और कथित जमींदारों ने बाद में बेच दिया था।  मछलीशहर तहसील भूमाफियाओं और जालसाजों का अड्डा बन हैं और उन्हीं पक्ष में रहते हैं। सबसे ज्यादा  फर्जीवाड़ा राजस्व संहिता की धारा 132 की सार्वजनिक खाते की जमीनों पर अपना नाम दर्ज करा कर बेच दिया है। आज मुंगराबादशाहपुर नगर में नाम मात्र के तालाब बचे हैं और अंतिम सांसे गिने रहे हैं,भीटा, नाली, खाद गड्डों का अस्तित्व समाप्त हो चुका है। जालसाजों व कथित जमींदारों को निजी लाभ पहुंचाने के लिए एक ही गाटा नम्बर की दो- दो खतौनी जारी कर दिया एक जेड ए (जमींदारी विनाश) दूसरी नॉन जेड ए ( गैर जमींदारी विनाश) एक ही नम्बर की दो-दो खसरा/खतौनी का भू-माफियाओं ने जमकर लाभ उठाया और राजस्वकर्मियों से सांठगांठ कर फर्जीवाड़ा करते हुए अब तक अरबों रुपये की सार्वजनिक/सरकारी भूमि बेची जा चुकी है। 51 वर्ष पूर्व किये गए फर्जीवाड़े आज तहसील प्रशासन के लिए मोटी रकम कमाने का जरिया बन हुए हैं। वर्ष 2017 में योगी सरकार ने भू माफियाओं को चिह्नित करने के लिए कड़े कानून लाते हुए प्रदेश, जिला और तहसील स्तर पर एन्टी भू-माफिया टास्क फोर्स का गठन किया। एन्टी भू-माफिया टास्क गठन होने के बाद जैसे कथित जमींदारों और भू माफिया गैंग की उम्मीदों को तो जैसे पंख लग गए और जमीनों पर कब्जा करने शुरू कर अपनी गैंग में राजस्वकर्मियों,नगरपालिका कर्मियों, मुंगराबादशाहपुर थाना के भ्रष्टा पुलिसकर्मियों 'कारखास' को जोड़कर धड़ल्ले से सरकारी सार्वजनिक और निजी जमीनों पर कब्जा करना शुरू कर दिया। योगी सरकार में ही जमीन कब्जा कर करोड़ों कमाने लगे। मछलीशहर तहसील में न तो नियमों की परवाह न तो कार्रवाही का भय। जंगल में मोर नाचा किसने देखा वही तरह योगी सरकार की एन्टी भू- माफिया टास्क फोर्स साबित हुई। मुंगराबादशाहपुर में भू-माफियाओं का मछलीशहर तहसील,नगरपालिका और पुलिस प्रशासन का गठजोड़ ने योगी सरकार की छवि धूमिल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जिसका खामियाजा भाजपा को मुंगराबादशाहपुर विधानसभा की सीट हाथ आते-आते निकल गई। क्योंकि दबंगों और भू-माफियाओं पर कोई कार्रवाही न होने से दबंगो और भू- माफियाओं गैंग के हौसले बुलंद होते चले गए।

इस खेल के मास्टरमाइन्ड मोहल्ला सिपाह,मुंगराबादशाहपुर के इकबालयार खाँ उर्फ़ पुत्र जहूरयार खाँ ने अपनी नम्बरदारी/जमींदारी जताने और बादशाहपुर मौजा में मकान - दुकान बनवा रहे लोगों का निर्माण रोकवाने के लिए पुलिस और प्रशासन को भी छकाया।

*क्या बला है नम्बरदार/जमींदार,खेवटदार*

मुंगराबादशाहपुर नगर के नागरिकों के लिये सिरदर्द बनी इस साजिश के सनसनीखेज रहस्योद्घाटन के बाद सामान्यजन के मन में भी यह प्रश्न कौंध उठेगा कि आखिर यह कौन सी बला है ,जिससे सभी परेशान है । जमींदारी प्रथा के जमाने के इन शब्दों का अर्थ नये जमाने के पढे - लिखे लोगों को भी शायद ही पता होगें । इस साजिश के सफ़ल होने में इन शब्दों का योगदान रहा है ।
ब्रिटिश साम्राज्य के जमाने की भूमि व्यवस्था (इस्तमरारी बन्दोबस्त) में एक निश्चित भू-भाग की कृषि योग्य भूमि (मजरुआ) को जमींदारों को ब्रिटिश सरकार नीलामी करके उसे इस इलाके के किसानों से चहारुन - लगान जिसे वर्तमान में भू- राजस्व कहा जाता है , वसूलने का हक दे देती थी । जमींदार इलाके के किसानों से चहारुन - भू-राजस्व वसूलने के लिए अपना जो आदमी रखते थे उन्हे खेवटदार कहा जाता था । जमींदार के बही - खाते में उस इलाके की जमीनों पर बतौर खेवटदार उस इलाके में चहारुन वसूलने वाले जमींदार के कारिन्दे - आदमी का नाम दर्ज होता था । जब वह लगान जमा करने जमींदार के मुन्शी के पास जाता था , तो उस इलाके के खेवटदारी में आने वाले किसानों की लगान की रकम दर्ज कर ली जाती थी । इस खेवटदार शब्द को वर्तमान में अमीन या टैक्स कलक्टर कहा जाता है , जो किसानों से लगान - भू-राजस्व वसूल कर सरकारी खजाने में जमा कराता है । यह खेवटदार अपनी मदद के लिए एक हट्ठा - कट्ठा लठैत किस्म का आदमी रखता था जिसे लम्बरदार कहा जाता था । जो किसानों से जोर - जबरदस्ती करके लगान की रकम को वसूल करवाता था । इस लम्बरदार को वर्तमान समय में तहसील के अमीन का चपरासी कहा जाता है ।
काश्तकार फ़ारसी भाषा का शब्द है। जमींदारी प्रथा में साधारणतः काश्तकार पाँच प्रकार के होते हैं, शरह मुएअन, दखीलकार, गैर दखीलकार, साकितुल—मालकियत और शिकमी । शरह मुएअन वे हैं जो दवामी बंदोबस्त के समय से बराबर एक ही मुकर्रर लगान देते आए हो । ऐसे काश्तकारों की लगान बढ़ाई नहीं जा सकती और वे बेदखल नहीं किए जा सकते । दखीलकार वे हैं जिन्हें बारह वर्ष तक लगातार एक ही जमीन जोतने के कारण उनपर दखीलकारी का हक प्राप्त हो गया हो और जो बेदखल नहीं किए जा सकते । गैर दखीलकार वे हैं जिनकी काश्त की मुद्दत बारह वर्ष से कम हो । साकितुल मालकियत वह है जो उसी जमीन पर पहले जमींदार की हैसियत से सीर करता रहा हो । शिकमी वह है जो किसी दूसरे काश्तकार से कुछ मुद्दत तक के लिये जमीन लेकर जोते ।

मजरुआ- जो जोता-बोया जाता हो (खेत)
गैरमजरुआ-बिना जोती बोई गई जमीन (अकृषक भूमि)
गैरमजरुआ आम-  सार्वजनिक जमीन जिसका उपयोग सभी कर सकते हैं जैसे तालाब,भीटा,चारागाह, मन्दिर, मस्जिद,शमशान,कब्रिस्तान,ईदगाह,होलिका स्थल इसकी बिक्री नहीं जा सकती।
गैरमजरुआ मालिक - सरकारी जमीन
केसरे हिन्द: भारत सरकार की जमीन
खास महाल: जमींदार कुछ ऐसी जमीन रखते थे जिसपर मेला या हाट लगाया जाता था या फिर खाली रखा जाता था। इसकी बिक्री नहीं हो सकती। यह लीज पर दी जाती है।

*क्या है हुक्मनामा* 

जमींदारी प्रथा के दौरान जमींदार सादा हुक्मनामा या निबंधित दस्तावेज द्वारा जमीन बंदोबस्त करते थे. बड़ी संख्या में लोगों को सादा हुक्मनामा से जमीन दिया गया है. यानी इसे रजिस्टर्ड नहीं कराया गया. लोग इसका रेंट भी जमींदार को देते थे.

पट्टा साधारणत: दो प्रकार का होता है मियादी या मुद्दती और इस्तमरारी । मियादी पट्टे के द्बारा मालिक एक विशेष अवधि तक के लिये असामी को अपनी चीज से लाभ उठाने का अधिकार देता है और उस अवधि के बीत जाने पर उसे उसको (आसामी को) बेदखल कर देने का अधिकार होता है । इस्तमरारी, दवामी, या सर्वकालिक पट्टे से वह असामी को सदा के लिये अपनी वस्तु के उपभोग का आधिकार देता है । आसामी की इच्छा होने पर वह इस अधिकार को दूसरो के हाथ कीमत लेकर बेच भी सकता है । जमींदारी का अधिकार जिस पट्टे के द्बारा एक निर्दिष्ट काल तक के लिये दूसरे को दिया जाता हैं उसे मुस्ताजिरी पट्टा कहते हैं । आसामी जिस पट्टे के द्वारा असल मालिक से प्राप्त अधिकार या उसका अंशविशेष दूसरे को देता है उसे शिकमी पट्टा कहते हैं । पट्टे की शर्तों का स्वीकृतिसूचक जो कागज असामी की ओर से लिखकर मालिक या जमींदार को दिया जाता है उसे कबूलियत कहते हैं । पट्टे पर मालिक के और कबुलियत पर आसामी के हस्ताक्षर या सही अवश्य होनी चाहिए।

*कैसे शुरु हुआ साजिश का खेल*

शहर के नागरिकों और जिला प्रशासन सांसत में डालने वाली इस साजिश की को रचा सिपाह मोहल्ला,मुंगराबादशाहपुर के निवासी इकबालयार खाँ उर्फ नवाब खाँ और कई लेखपाल जो लेखपाली कम नगर के जमीनों की खरीद - बिक्री के बड़े मगरमच्छ थे।

वर्ष 2006 में तत्कालीन लेखपाल ने इकबालयार खाँ,मुश्ताकयार खाँ,अशफ़ाक यार खाँ को मृतक नम्बरदार हसीबयार खाँ पट्टी जफरयार खाँ,पट्टी महमूदयार खाँ वरासतदार बनाकर दिया । इकबालयार खाँ ने उक्त रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन तहसीलदार के यहाँ वरासतन नम्बरदार- जमींदार नाम दर्ज करने का वाद दायर किया । तत्कालीन तहसीलदार ने बगैर इस प्रकरण को समझे दिनांक 10-03-2006 एक पक्षीय आदेश करते हुए खेवट बादशाहपुर मौजा 1358/59/62 फ़सली वर्ष में दर्ज मृतक हसीबयार खाँ, जफरयार खाँ,महमूदयार खाँ का काट कर इक़बालयार, मुश्ताकयार,अशफ़ाक यार खाँ पुत्र जहूरयार खाँ का नाम दर्ज करा लिया बतौर नम्बरदार दर्ज करा दिया । सरकारी अभिलेखों में गैरकानूनी ढंग से नम्बरदार के रुप में नाम दर्ज होने के बाद इकबालयार खाँ ने न्यायालयों के जरिए इसे पुष्ट करने का काम शुरु किया इसके लिए तहसील के न्यायालय से लेकर जिला न्यायालयों तक मुकदमें दायर किये । सबसे पहले कथित जमींदार ने जमींदारी क्षेत्र में हर सरकारी,सार्वजनिक,मकान,दुकान अपनी कहावत चरितार्थ करते हुए कई इलाके में मकान,दुकान बनवा रहे नागरिकों की जमींन को अपनी जमींदारी की बताकर रुपये की मांग की रुपए न देने पर निर्माण कार्य को रोका कूटरचित दस्तावेजों के जरिये दर्जनों फर्जी मुकदमे दायर किया। इस काम में तहसील प्रशासन का और पुलिस प्रशासन का भी भरपूर सहयोग मिलने लगा । इस खेल में शामिल इस गिरोह ने इस बीच करोड़ों रुपये कमाये क्योंकि इसमें सरकारी अमले से लेकर भू- माफ़िया ,नेता सभी लोग शामिल हो गये। नागरिकों को तंग करने पर तुले इस गैरकानूनी साजिश की जानकारी मछलीशहर लोस के सांसद वीपी सरोज ने मछलीशहर तहसील प्रशासन को जमकर फटकार लगाई तो तत्तकालीन तहसीलदार के उस एकतरफ़ा फैसला वाद संख्या 669/2005 मुश्ताकयार खाँ आदि बनाम नगरपालिका परिषद मुंगराबादशाहपुर तहसीलदार न्यायालय मछलीशहर दिनांक 10-03-2006 को आदेश जिसके आधार पर मृतक नम्बरदार हसीबयार खाँ,पट्टी जफरयार खाँ, महमूदयार खाँ की वरासत हासिल कर बादशाहपुर मौज की नम्बरदारी का अधिकार हासिल कर लिए थे ।उस आदेश को वर्तमान तहसीलदार के न्यायालय ने वाद संख्या 02826/2019 दिंनांक 31-01-2019 के आदेश को निरस्त दिया है।अर्थात अब ये लोग न्यायालयों का निर्णय आने तक किसी भी प्रकार की दावा नहीं कर सकते है । किन्तु यह यक्ष प्रश्न अभी भी खड़ा है कि एक लेखपाल के गलत रिपोर्ट लगाने और एक तहसीलदार के गलत एकपक्षीय आदेश से नगर क्षेत्र में बादशाहपुर मौजा की आबादी भूमि व बंजर ,तालाब,भीटा भूमि पर का गैरकानूनी दावा करने का अधिकार किसने दिया।

*लेखपाल की रिपोर्ट पर गैर कानूनी साजिशें*

तत्कालीन लेखपाल ने रिपोर्ट में बादशाहपुर के जमींदार को कोई औलाद नहीं है,यहां के जमींदार  मुसल्लेयार खाँ पुत्र मसूदयार खाँ थे जो मर गये हैं और उसके पोते इकबाल,मुश्ताक,अशफाक यार खाँ हैं। जबकि इकबालयार खाँ के पिता जहूर ने कमला बनाम जहूरयार खाँ तहसील न्यायालय मछलीशहर के न्यायालय में 03.09.1983 को लिखित बयान दिया है कि पटवारी की रिपोर्ट पर लम्बरदार बना हूं, किसी जमींदार ने हमको लम्बरदार नहीं नियुक्त नहीं किया है बल्कि पटवारी ने बनाया है लम्बरदारी के हमारे पास कोई कागज नहीं है।

*जमींदारी क्षेत्र में नगरपालिका का गृहकर वसूलना गैरकानूनी*

नगरपालिका मुंगराबादशाहपुर नगर में जमींदारी क्षेत्र से गृहकर की वसूली करती है तो यह भी गैरकानूनी है, क्योंकि गृहकर शुद्धरूप से भू-राजस्व है जिसे वह केवल उसी इलाके वसूल सकती है जिसका मालिकान उसके अभिलेखों में दर्ज है । साथ ही इन क्षेत्रों में जमीनों की खरीद - बिक्री की रजिस्ट्री पर लगी रोक से हो रही राजकीय राजस्व की क्षति का जिम्मेदार कौन है ।

*क्या कहता है कानून*

01जुलाई 1972 से नगरीय क्षेत्र की भूमि पर से जमींदार के अधिकार समाप्त कर दिये गये । इस राजकीय आदेश के बाद जब जमींदार की जमींदारी ही समाप्त हो गयी तब उसके कारिन्दों कहाँ से बचे और उनका कौन सा अधिकार बचा ।
इस प्रकरण में अगर मूलरुप से देखा जाये तो सीधे - सीधे तहसील मछलीशहर के भ्रष्ट अधिकारी - कर्मचारी जिम्मेदार है। इसकी और गहराई में जाया जाए तो नगरपालिका परिषद मुंगराबादशाहपुर के अधिकारी - कर्मचारी जिम्मेदार है क्योंकि जब राज्य सरकार ने शासनादेश के जरिये नगरीय क्षेत्र से जमींदारी को खत्म कर दिया और पालिका उस क्षेत्र से गृहकर वसूल कर रही है, तो उसे किसी दूसरे जमींदार या उसके किसी कारिन्दे के अधिकार जताने के पूर्व शासनादेश का अपने नगरीय क्षेत्र में अनुपालन करते हुए नगर क्षेत्र की सम्पूर्ण सार्वजनिक सम्पत्तियों का मालिकान अपने अभिलेखों में दर्ज करने की कार्यवाही काफ़ी पहले कर लेनी चाहिए थी ।
नगरपालिका परिषद मुंगराबादशाहपुर का पूरा अमला ही आकंठ भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है । नगर के जमींदारी वाले इलाकों की वरासत और खरीद - बिक्री के नामान्तरण पर तहसील और पालिका वाले मनमानी मोटी रकम वसूलते है। इसीलिए इस बाबत राज्य सरकार के शासनादेश का नगर में अनुपालन नहीं होने दे रहे है । नगर की सरकारी,सार्वजनिक उपयोग की जमीन को खुद नगरपालिका वाले मिलिभगत करके लुटवाते है । इसका ज्वलंत उदाहरण है वर्ष 2019 जुलाई में सिपाह मोहल्ला में मछलीशहर तहसीलकर्मियों व पुलिस की मिलीभगत से इस सार्वजनिक जमीन पर एक चर्चित भूमाफिया ने अवैध कब्जा कर निर्माण कर लिया साथ में नगरपालिका के हैंडपंप को तोड़ दिया उक्त सार्वजनिक जमीन को अतिक्रमण मुक्त कराने के बजाये नगरपालिका का पूरा अमला धृतराष्ट्र की तरह तमाशा देखती रही।

यह ऐसे दस्तावेजी प्रमाण है जिनसे यह बात प्रमाणित होती है कि मुंगराबादशाहपुर में बाड़ ही खेत को चर रही है ।
राहत की बात है कि बादशाहपुर मौजा के 1358/59/62 फ़सली वर्ष के खेवट में वरासत दर्ज करने वाले मूल आदेश निरस्त हो गया है । अगर आप मुंगराबादशाहपुर नगर में मकान, दुकान बना रहें हैं और कोई तथाकथित जमींदार आपका काम रोकवाने या इसके बदले पैसे मांगे तो आप तत्काल सम्पर्क करें ।

#अनिलविश्वकर्मा
साहबगंज,मुंगराबादशाहपुर 
जिला जौनपुर 222202

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