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*_सत्संग की दुकान_*
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*_एक दिन मैं सड़क से जा रहा था, रास्ते में एक जगह बोर्ड लगा था, ईश्वरीय किराने की दुकान..._*
*_जैसे ही यह ख्याल आया दरवाजा अपने आप खुल गया, जरा सी जिज्ञासा रखते हैं तो द्वार अपने आप खुल जाते हैं, खोलने नहीं पड़ते, मैंने खुद को दुकान के अंदर पाया..._*
*_मैंने दुकान के अंदर देखा जगह-जगह देवदूत खड़े थे, एक देवदूत ने मुझे टोकरी देते हुए कहा, मेरे बच्चे ध्यान से खरीदारी करना, यहां सब कुछ है जो एक इंसान को चाहिए है..._*
*_अब मैंने सारी चीजें देखी, सबसे पहले "धीरज" खरीदा, फिर "प्रेम", फिर "समझ", फिर एक दो डिब्बे "विवेक" के भी ले लिए..._*
*_आगे जाकर "विश्वास" के दो तीन डिब्बे उठा लिए, मेरी टोकरी भरती गई..._*
*_आगे गया "पवित्रता" मिली सोचा इसको कैसे छोड़ सकता हूं,फिर "शक्ति" का बोर्ड आया शक्ति भी ले ली.._*
*_"हिम्मत" भी ले ली सोचा हिम्मत के बिना तो जीवन में काम ही नहीं चलता..._*
*_थोड़ा और आगे "सहनशीलता" ली फिर "मुक्ति" का डिब्बा भी ले लिया...!_*
*_मैंने वह सब चीजें खरीद ली, जो मेरे प्रभु जी मेरे मालिक को पसंद है, फिर एक नजर "प्रार्थना" पर पड़ी मैंने उसका भी एक डिब्बा उठा लिया..!_*
*_वह इसलिए कि सब गुण होते हुए भी अगर मुझसे कभी कोई भूल हो जाए तो मैं प्रभु से प्रार्थना कर लूंगा कि मुझे भगवान माफ कर देना...!_*
*_आनंदित होते हुए मैंने बास्केट को भर लिया,फिर मैं काउंटर पर गया-और देवदूत से पूछा, सर..! मुझे इन सब समान का कितना बिल चुकाना होगा...!_*
*_देवदूत बोला: मेरे बच्चे यहां बिल चुकाने का ढंग भी ईश्ववरीय है,अब तुम जहां भी जाना इन चीजों को भरपूर बांटना- और लुटाना,जो चीज जितनी ज्यादा तेजी से लूटाओगे, उतना तेजी से उसका बिल चुकता होता जाएगा- और इन चीजों का बिल इसी तरह चुकता किया जाता है...!_*
*_कोई- कोई विरला ही इस दुकान में प्रवेश करता है। और जो एक बार- प्रवेश कर लेता है- वह माला-माल हो जाता है, वह इन गुणों को खूब भोगता भी है- और लुटाता भी है...!_*
*_प्रभू की इस दुकान का नाम है "सत्संग की दुकान "_*
*_सब गुणों के खजाने हमें- ईश्वर से मिले हुए हैं, और कभी खाली हो भी जाएं,तो फिर सत्संग में आ कर बास्केट भर लेना..._*
*_हे प्रभू ! इस दुकान से एक चीज भी खरीद के ग्रहण कर सकूँ- ऐसी कृपा करना..!!_*
*_🌸🌷 जय श्री राधे 🌷🌸_*
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